गुमनामी से बदनामी भला

.गुमनामी से बदनामी भला, लोग याद तो किया करते है। 

और बदनाम वही होते है, जो नेक काम किया करते है।। 

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कविता

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पत्नी

पत्नी 

 

पत्नी है जान मेरी
‎पत्नी है शान मेरी
‎हर पल पत्नी हीं
‎रखती है ध्यान मेरी
‎पत्नी हीं ध्यान है
‎पत्नी हीं ज्ञान है
‎सभी देविओं में सिर्फ
‎पत्नी महान है
‎पत्नी सुबह होती
‎पत्नी हीं शाम है
‎पत्नी के दया से हीं
‎बनते सब काम है
‎पत्नी हीं भूख होती
‎पत्नी हीं प्यास है
‎सुख दुख गम की
‎पत्नी हीं रास है
‎पत्नी बनाती घर
‎पत्नी सजाती घर
‎पत्नी से हीं मिलती
‎चैन की सांस है
‎पत्नी के साथ रहो
‎जो वो चाहे वही कहो
‎वरना पूरे घर की
‎करतीं विनाश है

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कवि बीरेंद्र गौतम “अकेलानंद”

बस्ती-उत्तर प्रदेश 

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शूद्र की चेतना एवं सच्चा हिन्दू कौन ?

शूद्र की चेतना एवं सच्चा हिन्दू कौन ?

जाग उठो सारे हिन्दू भाइयो और एक हो जाओ वर्ना 

 

बटेंगे तो कटेंगे  , बंटे है तभी कट रहे है

 

कौन काटेगा  कौन बाँटेगा , ‎सच्चा हिन्दू कौन छाँटेगा 

‎आज धर्म की  बात करेंगे, ‎पीछे फिर बर्बाद करेंगे

‎अभी तलक क्यो सोये थे, ‎जब हम निचले रोये थे 

तब तक क्या हम हिन्दू ना थे, ‎तेरे धर्म के बिंदु न थे

शुद्रो पर अत्याचार

 

 

 

 

 

 

तब तुमने फटकार दिया, ‎कुत्ते सा दुत्कार दिया

‎गले मे हांडी डाली थी , ‎कहते हमको गाली थी

‎तेरे राह न चलते थे, ‎गन्दगियो मे पलते थे

‎ना पढ़ने लिखने का हक़ था, ‎पास ना धन् रखने का हक था

हिन्दू ग्रन्थ बनाम संविधान

तुमने वेद पुराण बनाया, ‎33 करोड़ भगवान बनाया

‎मंदिर की भरमार हुई, ‎फिर जाति एक लाचार हुई

‎चार जगह से जन्म दिखाया, ‎खुद को मुख से उतपन्न बताया

शूद्र – शूद्र कहकर चिल्लाये, ‎सबके मन मे जहर फैलाये

 

ग्रंथो में लिखे सबूत

हम खुद से ही शर्माते थे, ‎और मुखड़ा सदा छिपाते थे

‎तुम तो भगवान के प्यारे थे, ‎हम पिछले जन्म के मारे थे

‎कुछ ऐसा ही पाठ पढ़ाया, ‎स्वर्ग नरक का डर दिखलाया

‎फिर एक मसीहा जाग उठा, ‎दिल में सबके तूफ़ान उठा

संविधान निर्माता बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर

‎जिस दिन लागू सविधान हुआ, ‎वो हम सबका भगवान हुआ

‎तब जाकर हम इंसान बने, ‎फिर पढ़ लिखकर धनवान बने

‎अब तुमने जो गुमराह किया, ‎है वादा तुम्हे न छोड़ेंगे

‎जितने वर्षो तक हमें सताया, ‎उतने टुकड़ो में तोड़ेंगे

‎हम बौद्ध धर्म अनुयायी है, ‎ना बैर किसी से करते है

‎पर बात अगर अभिमान की हो, ‎फिर मरने से ना डरते है

‎है देश में डंका बाज रहा, ‎आज जय भीम के नारो से

‎शिक्षित और संगठित रहो, ‎ना डरना इन गद्दारों से.

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कवि बीरेंद्र गौतम “अकेलानंद”

जिला बस्ती , उत्तर प्रदेश

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कौन हूँ मैं

कौन हूँ मैं

कौन हूँ मैं, मैं कौन हूँ

आन हूँ मैं बान हूँ

खुद की अपनी शान हूँ

जिन्दगी में कौन मेरा

मैं तो खुद की जान हूँ

कौन हूँ मैं , मैं कौन हूँ

सपनो का मैं राही हूँ

मैं निडर सिपाही हूँ

अपनी बलि चढाने को

खुद ही मैं कसाई हूँ

कौन हूँ मैं , मैं कौन हूँ

ना मेरा कोई प्यार है

न किसी से इजहार है

तन्हाई में मैं जीता हूँ

तन्हाई मेरा यार है

कौन हूँ मैं, मैं, कौन हूँ

कोई ख्वाब मेरा तोड़ गया

मझधार में ही छोड़ गया

एहसान किया उसने मुझ पर

मुझको मुझसे जोड़ गया

कौन हूँ मैं, मैं कौन हूँ

अब तो मैं रुकुंगा नहीं

अब कभी झुकूँगा नहीं

वो खुद को चाहे मार दे

पर साथ दे सकूँगा नहीं

कौन हूँ मैं, मैं कौन हूँ

अब किसी की सुनना नहीं

साथी कोई चुनना नहीं

शांत हो चूका हूँ मैं

ख्वाब कोई बुनना नहीं

अब मौन हूँ मैं, हां मैं मौन हूँ

कवि बीरेंद्र गौतम “अकेलानंद “

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दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न

 

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न,

घिरा पड़ा हूँ अंधकार से आकर राह दिखाओ न ।

बचपन में चलते चलते जब घुटने पर गिर जाता था ,

मिट्टी कीचड़ में सन करके मैं गंदा हो जाता था ।।

रोते रोते सूनी आँखे आंसू से भर जाती थी ,

माता भी गुस्से में जब पास न मेरे आती थी ।

झुकी कमर से भी तुम तब ऐसी दौड़ लगाते थे,

राजा बेटा मेरा कहकर फ़ौरन गोद उठाते थे ।।

आज गिरा हालात में फसकर फिर से मुझे उठाओ न ।

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न ।।

राजा रानी, घोड़े हाथी के किस्से  रोज सुनाते थे,

मुझे बिठा कर पीठ पर अपने खुद घोडा बन जाते थे ।

कभी सहारा बनू आपका , मुझको चलना सिखलाया,

सही गलत में फर्क भी करना तुमने मुझको बतलाया ।।

आज जमाना बदल चुका है समझ नहीं कोई आता ,

रहे सामने साथी बनकर पीछे से गला दबा जाता ।

कौन है अपना कौन पराया फिर मुझको समझाओ न,

फिर से गिरा मुसीबत में अब इससे मुझे बचाओ न ।।

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न ।

घिरा पड़ा हूँ अंधकार से आकर राह दिखाओ न ।।

 

कवि बीरेंद्र गौतम ” अकेलानन्द”

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हंसो हमेशा जिन्दगी में 

हंसो हमेशा जिन्दगी में 

 

किसी बात पर हंसो , कभी बिन बात पर हंसो 

हालत नहीं अच्छे तो, अपने हालात पर हंसो 

हंसो हर दिन पर और हर रात पर हंसो 

कभी जुदाई पर हंसो तो, कभी मुलाकात पर हंसो 

अपने हार पर हंसो, फिर उसी जज्बात पर हंसो 

किसी  ने दी नहीं कभी , हर उस सौगात पर हंसो 

ज़माना हंस रहा तुम पर, उस सवालात पर हंसो 

हंसो हरदम की जब तक, तुम्हारे अंदर सांस बाकी है 

और जब अंत हो नजदीक , तो उस कायनात पर हंसो 

सदा उदास रहने से, सब कुछ बिखर जाता है 

और हंसते रहने से जीवन  संवर जाता है 

अकेले में भी हंसो और सबके  साथ भी हंसो 

किसी बात पर हंसो तो कभी बिन बात पर हंसो 

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बीरेंद्र गौतम ” अकेलानंद “

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तेरा मुझसे दूर जाने का गम नहीं

तेरा मुझसे दूर जाने का गम नहीं 

 

 

तेरा मुझसे दूर जाने का कोई गम नहीं,

सुकून है इसकी वजह तो हम नहीं ।

जमाने से जाकर मेरी ही कमियाँ गिनाएगी,

फिर भी यकीं है की तेरी दलील में कोई दम नहीं ।।

 

इस हुश्न की तारीफ़ में कुछ न बोलूँगा ,

हर गम को सहते हुए छुपकर रो लूँगा ।

मालूम है उसका प्यार सिर्फ मेरा ही नहीं है ,

पर ये राज जमाने के सामने नहीं खोलूँगा ।।

 

कहने को तो बहुत कुछ है पर आप सुनते कहाँ हो ,

हमारे यादो के भी सपने आप  बुनते कहाँ हो ।

हमने तो पहली नजर में आपको अपना बना लिया,

किसी कशमकस  में आप हमें चुनते कहाँ हो ।।

 

उसकी बेरुखी को कब तक सह पाऊंगा ,

अब जाने किस हद तक चुप रह पाऊंगा ।

पता है वो शामिल है किसी गैर की महफ़िल में ,

प्यार खोने के डर से मैं कुछ न कह पाऊंगा ।।

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बीरेंद्र गौतम “अकेलानंद “

 

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कोई दिन न बचा ऐसा कि जब तेरी याद न आई हो

कोई दिन न बचा ऐसा कि जब तेरी याद न आई हो

 

कोई दिन न बचा ऐसा

कोई दिन न बचा ऐसा की,

                      जब तेरी याद न आई हो |                    

कोई पल नहीं याद मुझे की,

जब तेरी याद न आई हो ||

यूँ तो साँसे भी छोड़ जाती है ,

एक बार को धोखा देकर |

आंसू भी आँख से गिर जाते ,

किसी अपने को खोकर ||

इक मेरा दिल ही है जिसमे ,

कोई बदलाव न आई हो |

कोई पल नहीं याद मुझे ,

की जब तेरी याद न आयी हो ||

क्या याद तनिक भी है तुझको ,

जो कसमे मिलकर खाई थी |

दोनों से पूरी दुनिया थी ,

बाकी सब लगी परायी थी ||

हैरान नहीं हूँ मैं तुझ पर ,

इक वादा भी अगर निभाई हो |

कोई पल नही याद मुझे की ,

जब तेरी याद न आयी हो ||

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                   बीरेंद्र गौतम “अकेलानंद ” 

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हसरत उसे पाने की पूरी न हो सकी

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इन्तहा इंतजार की ख़त्म होती नहीं

इन्तहा इंतजार की ख़त्म होती नहीं

 

बीरेंद्र गौतम ” अकेलानंद” – बस्ती

तुम आँखों से इशारा न करते अगर,

इन्तहा इंतजार की ख़त्म होती नहीं ।

बात गर दिल से की होती मुझसे कभी,

बेवजह रात भर आँख रोती नहीं ।।

प्यार था प्यार है और रहेगा सदा,

ऐतबार करना सीखा न हमने कभी ।

जो जगह दी है तुझको इस दिल ने मेरे,

यादो के धागों में फिर पिरोती नहीं।।

कोई बिछड़े कभी चाहे दूरी करे,

कितना जायज जुदाई में कोई मरे ।

जिन्दगी इतनी आसान होती अगर,

उम्र भर बोझ यादों के ढोती नहीं।।

इक मुलाकात, फिर बात बढती गयी,

फिर तेरा इश्क सर मेरी चढ़ती गयी ।

न गिरते कभी  प्यार में इस कदर,

बांहों में कसके इक रात सोती  नहीं ।।

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मेरी वाली वेकअप करके मेकअप करती है ,बात बात पर मुझसे वो ब्रेकअप करती है

बात बात पर मुझसे वो ब्रेकअप करती है

कवि एवं अभिनेता – बीरेंद्र गौतम (अकेलानंद )

अकेलानंद

मेरी वाली वेकअप करके मेकअप करती है ।

बात बात पर मुझसे वो ब्रेकअप करती है ।।

किसी से मिलने जाऊ या किसी से मैं बतियाऊं,

सुबह शाम मोबाईल मेरा चेकअप करती है।

नए पुराने दोस्त किसी से कभी न मिलने देती,

गर लडकी के बगल से गुजरूँ पूरी खबर वो लेती ।।

खुद तो कितने लडको से वो हैण्ड शेकअप करती है,

बात बात पर मुझसे वो ब्रेकअप करती है ।।

इस सन्डे को कपड़े मांगे उस सन्डे को सैंडल,

खर्चा इतना करवाती अब होती नही है हैंडल ।

मिलते ही सैलरी सारी वो टेकअप करती है,

बात बात पर मुझसे वो ब्रेकअप करती है ।।

सुबह सुबह बिस्तर से बोले जल्दी दे दो काफी,

गलती चाहे वो करती फिर भी मैं मांगू माफ़ी ।

जाने की धमकी देती, फौरन पैकअप करती है ,

बात बात पर मुझसे वो ब्रेकअप करती है ।।

 

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तू तडपेगी जरूर , मगर धीरे धीरे

तू तडपेगी जरूर , मगर धीरे धीरे

 

तू तडपेगी जरूर , मगर धीरे धीरे ।

मिलने को होगी मजबूर , मगर धीरे धीरे ।

आइना देखकर यूँ, इतना इतराया न कर,

ये उम्र भी ढलेगी जरूर, मगर धीरे धीरे ।।

इन हुस्न की गलियों में ऐसे न खो जाना,

भागदौड़ का है दस्तूर , मगर धीरे धीरे ।

थोड़ी तो रहम कर, ये बेरहमी शोभा नही देती,

टूटता है सबका गुरुर , मगर धीरे धीरे ।।

तेरे संग बीते सभी यादे जिन्दा है अभी,

दिल से मिटेगा, जरुर मगर धीरे धीरे।

अभी कुछ और पल इसी आगोश में जीने दे,

फिर इसे कर देना चकनाचूर, मगर धीरे धीरे ।।

सुना था की मुहब्बत में यकीं मुश्किल से करो ,

मुझ पर भी चढ़ा था सुरूर, मगर धीरे धीरे ।

दुनिया भले ही डूबे इस समंदर में अकेलानंद ,

पार तो मैं निकलूंगा जरुर मगर धीरे धीरे ।।

बीरेंद्र गौतम ” अकेलानंद ” जिला बस्ती

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कलम के जादूगरों का चला जादू , चुतर्थ वार्षिकोत्सव में मचा धमाल

कलम के जादूगरों का चला जादू , चुतर्थ वार्षिकोत्सव में मचा धमाल

 

गजियाबाद में ३० नवंबर को अनंत होटल में कलम के जादूगर  का चर्तुथ वार्षिकोत्सव बहुत ही धूमधाम से मनाया गया । इस कार्यक्रम में पूरे देश भर से आये हुए कवियों ने अपना जादू विखेरा । कलम के जादूगर के संस्थापाक श्री श्रेय तिवारी जी की अध्यक्षता में यह कार्यक्रम हुंकार  के नाम से आयोजित किया गया । इस संस्था का मुख्य उद्देश्य देश भर के नयी कलम को एक मंच दिलाना और उनकी पहचान दिलाना है ।

कलम के जादूगर
मैं बीरेंद्र गौतम , मुझे भी लिखने का शौक बहुत पहले से ही था मैंने कई सारे कविताये और कहानियां लिखी है ।
परन्तु मंच पर उन्हें सुनाने का मौका पहली बार कलम के जादूगर के होली महोत्सव में माननीय श्रेय तिवारी जी के माध्यम से सौभाग्य प्राप्त हुआ ।  जिससे न सिर्फ मेरी लेखनी को एक दिशा मिली बल्कि मेरे खुद के अन्दर यह जाग्रति पैदा हुई की मैं भी लिख सकता हूँ और आगे अपनी पहचान बना सकता  हूँ ।  अब तक न जाने कितने ही लोगो को इस मंच के माध्यम से एक शुरुआत मिली है और कितने ही कवि आज पूरे देश भर में अपनी रचनाओ द्वारा हिंदी साहित्य की सेवा कर रहे है ।
कलम के जादूगर परिवार का एक ही सपना है हिंदी साहित्य को उंचाइयो तक ले जाना और हर उस नए कलाकार को एक मंच दिलाना  ।
हुंकार का संचालन कवियित्री पूजा श्रीवास्तव , कवियित्री अलका  बलूनी पन्त , कवियित्री भावना जैन और कवियित्री अर्चना झा द्वारा किया गया ।
इस क्रायक्रम में हुंकार भरने वाले पूरे देश से पधारे रचनाकार है –  अंजू चौधरी, श्राबोनी गांगुली , मंजू कुशवाहा , पूनम नैन मलिक , रजनी जैन उन्नत , दीप्ति मिश्रा , स्मिता सिंह चौहान , ईशा भारद्वाज, मीरा सजवान , शशि किरण श्रीवास्तव, दीपिका वाल्दिया, अंजना जैन, नीलम यादव, डा सरिता गर्ग, संगीता वर्मा, डा वंदना श्रीवास्तव, सुकृति श्रीवास्तव, निशा सक्सेना, पारुल चौधरी, दीपांशी शुक्ला, कुलदीप  शुक्ला, डा ब्रजभूषण, विक्रम सिंह यादव वरनी, निर्दोष कुमार विन , रिजवान फरीदी , पद्मनाभ त्रिपाठी , तरुण जैन, शशांक मणि यादव , भूपेंद्र राघव, वेद भारती , अरुण कुमार श्रीवास्तव, विनय कुमार साहू निश्छल, विजय पुरोहित, नवीन जोशी नवल, और बीरेंद्र गौतम “अकेलानंद” 
इस कार्यक्रम में किसी  ने हास्य छेड़ा तो किसी ने राजनीति पर व्यंग कसा , सभी रचनाकारों ने अपने उत्कृष्ट रचना द्वारा श्रोताओ का मन मोह लिया  । क्रायक्रम के अंत में सभी  रचनाकारों को कलम के जादूगर के समूह द्वारा सम्मानित किया गया ।

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चले जाओ न आना तुम दोबारा लौटकर – CHALE JAO NA AANA TUM DOBARA LAUTKAR

चले जाओ न आना तुम दोबारा लौटकर – CHALE JAO NA AANA TUM DOBARA LAUTKAR

 

चले जाओ न आना तुम दोबारा लौटकर,

नहीं हम जोड़ते रिश्ते को फिर से तोड़कर  ।।

बिताये दिन तुम्हारे साथ थे हम क्यों भला,

समझ पाए नहीं तुम हो मुसीबत की बला ।

तुम्हे दिन रात हम तो याद करते ही रहे,

मगर पीछे सदा ही काटते थे तुम गला ।।

चैन से जी रहा हूँ मैं तुम्हे अब छोड़कर,

चले जाओ न आना तुम दोबारा लौटकर …

पढाई भी तुम्ही ने तो मेरी बर्बाद कर डाली,

तेरे कारण ही सुनता हूँ पिता जी से अभी गाली ।

जो कुछ भी जेब खर्च मिलते वो सब तुमने किये खाली,

इस झूठे प्यार की खातिर, क्यों मन में थी भरम पाली ।

बहुत खुश है तू अब औरो से रिश्ता जोड़कर,

चले जाओ न आना तुम दोबारा लौटकर … ।।

समझ आता नहीं था जब तू मेरे साथ थी,

बिना पंखो के पंक्षी सी मेरी हालत थी।

इशारो पर तेरे दिन रात यूँ चलता रहा,

सफल तो गयी , मैं हाथ बस मलता रहा ।

मिला क्या तुझको मकसद से मुझको मोड़कर

चले जाओ न आना तुम दोबारा लौटकर ।।

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