जो कभी हर मुस्कान पर मरते थे Leave a Comment / काव्य, पैरोडी / By Akelanand Spread the love Post Views: 254 जो कभी हर मुस्कान पर मरते थे कभी जो मरते थे हर मुस्कान पर मेरी,वो मेरी हंसी पर पहरा लगाने लगे है lसुलाते थे जो मुझको पलकों पर अपनी,आज रात – दिन वो जगाने लगे है llतरसता हूँ मिलने को कहते थे हर पल,अब एक पल में भगाने लगे है lपहले तो देते है जख्म जी भरके ,फिर बेवजह मरहम लगाने लगे है lशिकायत करू क्या खुदा से भी अब मै,ऐसे क्यों इंसान बनाने लगे है lसदा टूट जाता है जब दिल तुम्हारा ,फिर भी क्यों किस्मत आजमाने लगे है llइसे भी पढ़े : आज की रात सिर्फ और मुझे जीना है