गुमनामी से बदनामी भला
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गजियाबाद में ३० नवंबर को अनंत होटल में कलम के जादूगर का चर्तुथ वार्षिकोत्सव बहुत ही धूमधाम से मनाया गया । इस कार्यक्रम में पूरे देश भर से आये हुए कवियों ने अपना जादू विखेरा । कलम के जादूगर के संस्थापाक श्री श्रेय तिवारी जी की अध्यक्षता में यह कार्यक्रम हुंकार के नाम से आयोजित किया गया । इस संस्था का मुख्य उद्देश्य देश भर के नयी कलम को एक मंच दिलाना और उनकी पहचान दिलाना है ।
कलम के जादूगरों का चला जादू , चुतर्थ वार्षिकोत्सव में मचा धमाल Read More »
चले जाओ न आना तुम दोबारा लौटकर,
नहीं हम जोड़ते रिश्ते को फिर से तोड़कर ।।
बिताये दिन तुम्हारे साथ थे हम क्यों भला,
समझ पाए नहीं तुम हो मुसीबत की बला ।
तुम्हे दिन रात हम तो याद करते ही रहे,
मगर पीछे सदा ही काटते थे तुम गला ।।
चैन से जी रहा हूँ मैं तुम्हे अब छोड़कर,
चले जाओ न आना तुम दोबारा लौटकर …
पढाई भी तुम्ही ने तो मेरी बर्बाद कर डाली,
तेरे कारण ही सुनता हूँ पिता जी से अभी गाली ।
जो कुछ भी जेब खर्च मिलते वो सब तुमने किये खाली,
इस झूठे प्यार की खातिर, क्यों मन में थी भरम पाली ।
बहुत खुश है तू अब औरो से रिश्ता जोड़कर,
चले जाओ न आना तुम दोबारा लौटकर … ।।
समझ आता नहीं था जब तू मेरे साथ थी,
बिना पंखो के पंक्षी सी मेरी हालत थी।
इशारो पर तेरे दिन रात यूँ चलता रहा,
सफल तो गयी , मैं हाथ बस मलता रहा ।
मिला क्या तुझको मकसद से मुझको मोड़कर
चले जाओ न आना तुम दोबारा लौटकर ।।
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प्यार की भाषा का कोई शब्द नहीं होता इसलिए इशारो में प्यार हो जाता है, आइये आपको इशारो वाला प्यार (ISHARON WALA PYAR ) की कहानी सुनाता हूँ. –
सुबह का समय है, मौसम बहुत ही खुशनुमा है, मंद मंद हवा चल रही है । कुछ जोड़े इधर – उधर बांहों में बाँहे डालकर घूम रहे है । बुजुर्ग दम्पति भी खुली हवा में सांस लेते हुए व्यायाम कर रहे है ।
एक लड़की अकेली दौड़ लगा रही है, लेकिन उसका ध्यान किसी की तरफ न होकर एक दम शांत है । बगल से एक लड़का कानो में हेडफोन लगाकर दौड़ता हुआ निकलता है लेकिन दोनों की कोई प्रतिक्रिया नहीं । अगले दिन फिर दोनों दौड़ते हुए आमने सामने टकराते है लेकिन किसी की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती । मानो दोनों में से किसी को एक दूसरे में दिलचस्पी न हो । धीरे – धीरे एक महीना बीत जाता है और दोनों रोज ही एक बार आपस में टकराते जरुर है ।
फिर एक दिन वो लड़का उस लड़की को प्रपोज करता है । देखो मैं तुम्हे रोज देखता हूँ, शुरू में तो लगा की हम ऐसे ही एक दूसरे से टकरा गए, लेकिन रोज –रोज मिलने से मैंने तुम पर ध्यान देना शुरू कर दिया । एकदम शांत स्वाभाव, किसी तरह की कोई दिखावा नहीं, अपने आप में खोयी सी रहती हो, फिर पता नहीं क्यों मेरे दिल में एक अजीब सा हलचल हुआ और फिर मै तुम्हारे प्रति आकर्षित होने लगा ।
शुरू में तो मैंने सोचा की 2-4 दिन में सब खत्म हो जायेगा , लेकिन मैं मन ही मन तुमसे प्यार कर बैठा । मुझे न तुम्हारा नाम मालूम, न पता मालूम, तुम करती क्या हो , परिवार वैगरह आदि । फिर भी मैंने हिम्मत जुटाई और आज तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ!
क्या तुम मेरा साथ दोगी , सदा सदा के लिए
वो लड़की हतप्रभ उसे दखते रह गयी , परन्तु उसके आँखों के एक कोने से पतली सी आंसू की धारा बह निकली । उसके इस व्यवहार से लड़के को बड़ा दुःख हुआ की कही उसने कोई गलती तो नहीं कर दी । फिर भी उसने अपने आप को संभाला और बोला देखो कोई जबरदस्ती नहीं है, अगर तुम नहीं चाहती तो मना कर सकती हो । फिर लड़की ने जो इशारा किया उसे देखकर लड़के की मनोदशा विचलित हो गयी , दरअसल वो लड़की बोल नहीं सकती थी । उसने इशारे में उसे समझाया की मैं गूंगी हूँ और तुम्हारा साथ कैसे दे पाऊँगी ।
लड़का कुछ सोचते हुए , आँखों में आंसू लेकर भारी कदमो से वंहा से चला गया । लड़की उसे दूर जाते देखकर फूट फूट कर रोने लगी ।
उसके बाद अगले दिन फिर वो लड़की उसी पार्क में घूमने आयी परन्तु वो लड़का दिखाई नहीं दिया ।
समय बीतता गया 15 दिन से ज्यादा हो गए परन्तु वो लड़का दिखाई नही दिया । लड़की ने उसे भूल जाना ही बेहतर समझा ।
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फिर एक दिन वो रोज की तरह उसी पार्क में घूमने आयी , और अभी बगल में रखी बेंच पर बैठी ही थी की सामने से वही लड़का हाथ में गुलदस्ता लेकर आता हुआ दिखाई दिया । उसके पास आकर लड़के ने कुछ इशारा किया बदले में उस लड़की ने भी इशारे में उसका जवाब दिया ।
लड़के ने वो गुलदस्ता उस लडकी के हाथो में दिया जिसे उसने तुरंत स्वीकार किया और उससे लिपट गयी ।
दरअसल बात ये हुई की लड़का उस लडकी को दिल से चाहने लगा था , लेकिन जब उसे पता चला की वो बोल नही सकती तो वो निराश हो गया । फिर उसने वो भाषा सीखी जिससे वो इशारे में उससे बात कर सके । और आज वो न की उसकी बात को समझ सकता था बल्कि अपनी बात भी कह सकता था । ये जानकार उस लकड़ी की आँखों से आंसुओ के धार बह निकले, वो उससे लिपट कर रोने लगी ।
लड़के ने उसे इशारे इशारे में समझाया की लोग हमें देख रहे है , ये देखकर वो लड़की मुसकरयी और फिर दोनों हाथो में हाथ डालकर वंहा से निकल गए ।
और इस तरह से इशारों वाला प्यार इशारों ही इशारों में परवान चढ़ जाता है ।
इशारों वाला प्यार – ISHARON WALA PYAR Read More »
भारत देश एक देश है जिसमे कई सारे धर्म, जाति और सम्प्रदाय के लोग स्वतंत्र होकर रहते है । इस देश में किसी को भी किसी धर्म को मानने या न मानने पर किसी भी तरह का दबाव नहीं दिया जाता । कुछ लोग ईश्वर को मानने वाले है तो वहीँ कुछ नास्तिक भी देखने को मिल जायेंगे लेकिन सभी में भारत देश के प्रति प्रेम देखने को मिल जायेगा ।
अगर हम जाति की बात करे तो अकेले हिन्दू धर्म में लगभग तीन हजार जातियां और पचीस हजार उपजातियां देखने को मिल जाएँगी । आखिर किसी एक धर्म के मानने वालों को इतने वर्गों में या जातियों में बांटने की जरुरत क्यों पड़ी ?
कुछ इतिहासकारों का मानना है की भारत देश के मूलनिवासी आदिवासी , जिन्हें दलित भी कहा जाता है वही है , बाकी अपने आप को उच्च वर्ग के मानने वाले तो बाहर से आये हुए है । उन्होंने यंहा आकर भारत देश के भोली भाली जनता (दलितों ) को मूर्ख बनाकर उन्हें निचला बताकर और अपने आपको सर्व श्रेष्ठ साबित कर दिया । तब से लेकर आज के इस आधुनिक युग में भी हम इस जाति व्यवस्था से निकल नहीं पाए है । आज भी किसी दफ्तर में चाहे वो सरकारी हो या प्राइवेट सब जगह जाति पूछ कर काम किया जाता है अगर आप काम करने वाले कर्मचारी के निकटतम जाति के है तो आपका काम आसानी से हो जाता है वहीँ अगर आप निचली जाति से है तो आपका काम जरुरत से ज्यादा देर से होता है ।
(Hindu Dharm me Dalito ka sthan )
हमारे देश के सभी बड़े हिन्दू नेता आज कल एक ही रट लगाये बैठे है की सभी हिन्दू एक हो जाओ , अगर बटोगे तो कटोगे
आखिर किस हिन्दू को एक होने की बात कर रहे है जहाँ एक दलित की फिल्म को आज के इस आधुनिक युग में भी नहीं रिलीज होने दिया जा रहा है ।
किस मुंह से आप उन्हें हिन्दू होने की बात कर रहे है !
जहाँ राजनीति में जातिवाद कूट कूट कर भरा हुआ है ब्राह्मणवादी विचार की बू आती है !
कहने को वो सभी को एक करना चाहते है परन्तु अन्दर ही अन्दर नफरत लिए बैठे है ।
सभी को गैर हिन्दुओ से खतरा है लेकिन यहाँ तो दलितों को आज भी हिन्दू नहीं माना जा रहा है । दशको पहले जो दलितों के साथ या यूं कहे की जो इस देश के असली मालिक है उनके साथ भेदभाव होता आया है । आज दलित समाज अपने शिक्षा के बल पर बड़े बड़े कामयाबी हासिल कर रहा है इज्जत की रोटी खा रहा है लेकिन इन मनुवादियों को ये हजम नहीं हो रहा है ।
ये आदिकाल से ही दलितों के दुश्मन बने हुए है । हमारे देश के प्रधानमंत्री जब विदेश दौरे पर होते है तो कहते है मैं भगवान बुद्ध की धरती से आया हूँ । परन्तु आज भी यहाँ बुद्ध के अनुयायियों को हिकारत के नजरो से देखा जाता है ।
कहते है फिल्मे समाज का आइना होते है जिसका प्रभाव सबके दिमाग पर होता है । अभी पीछे कई हिन्दू कहानियो पर आधारित फिल्मे आई जिनमे कइयो को लेकर आन्दोलन भी किये गए । परन्तु एक दलित आधारित फिल्म को इस देश में रिलीज नहीं होने दिया जा रहा है जो की सच्चाई को दर्शाती है ।
अब इस देश के दलितों पिछडो को सोचने की जरुरत है की ये मनुवादी आज भी आपके हितैषी नहीं है ।
ये कितना भी हिन्दू संगठित होने की बात कर रहे हो परन्तु आप ये समझ लेना की जब कोई जहरीला सांप सिर झुकाता है तो समझ लीजिये वो जहर उगलने की तैयारी में है ।
अब फैसला आपके हाथ में है की इन मनुवादियो के पत्तल में झूठा चाटते रहना है या अपने दम पर आगे बढ़ना है ।
आपके दिमाग में चलने वाली बाते –
हमारा मालिक हमें बहुत मानता है ।
मैं अपने मालिक को धोखा नहीं दे सकता ।
यंहा सीखने को बहुत कुछ मिल रहा है ।
यार इमरजेंसी में पैसा मिल जाता है ।
1-2 घंटे देर से जाता हूँ तो पैसे नहीं काटता ।
पता है मेरे बिना कम्पनी का काम नहीं चलता ।
कम्पनी की चाभी तक मेरे पास है ।
जब मुझे जरुरत थी तो कम्पनी ने मेरा साथ दिया अब मुझे भी साथ देना चाहिए ।
कम्पनी या ऑफिस ज्यादा दूर नहीं है ।
अगर ये सारे विचार आपके भी है तो सावधान आप एक ऐसे दलदल में फंसते जा रहे है जहाँ से निकलना बहुत ही मुश्किल हो जायेगा ।
जब तक आपको समझ में आयेगा की आप दलदल में फंस चुके है तब तक बहुत देर हो जाएगी ।
जरा सोचिये आप अपना घर परिवार छोड़कर इतनी दूर शहर में किस लिए आये है – पैसा कमाने के लिए न , फिर इस मोह के चक्कर में पड़कर अपने लक्ष्य से क्यों भटक रहे है ।
प्यार मोह तो आपके घर परिवार से होना चाहिए था जिन्हें आप पैसो की खातिर छोड़ चुके है तो फिर बहरी लोगो से उम्मीद क्यों ?
प्राइवेट कम्पनी वाले किसी के नहीं होते इन्हें बस अपना उल्लू सीधा करना होता है ।
जब तक आप इन्हें 100 रूपये कमाकर दे रहे है तो बदले में ये आपको 10 रूपये का तनख्वाह दे रहे है । जिस दिन इन्हें लगेगा की आप के काम में कमी हो रही है या आप उतना काम करने में सक्षम नहीं है, उसी दिन ये आपको दूध से मक्खी की तरह निकाल कर बाहर कर देंगे ।
उस समय आप सोचेंगे की आपका मालिक आपको कितना मानता है । अरे भाई किस अँधेरे में जी रहे है अभी भी समय है और समय रहते नौकरी बदल लेनी चाहिए ।
किस समय तक नौकरी बदलते रहे
बहुत से लोगो को प्रश्न होता है की अभी तो हम काम पर लगे है और यंहा तो बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है तो हमें नौकरी बदलनी चाहिए या नहीं-
उसके लिए निम्न बातो का ध्यान रखे –
जिस कम्पनी में काम कर रहे है उस कम्पनी का ग्रोथ रेट क्या है मतलब कम्पनी कितनी पूरानी है और किस लेवल तक पहुची है ।
उस कम्पनी में सबसे पुराने कर्मचारी की तनख्वाह क्या है और सबसे बड़ी बात उस कम्पनी में उसकी इज्जत कितनी है ।
जिस काम को आप सीखने की कोशिस कर रहे है उस काम में और कितने लोग है , आपका कम्पटीशन कितने लोगो से है , और वो कितने दिन से काम कर रहे है ।
क्या उस काम से और उस कम्पनी से मिलने वाले पैसे से आपकी जरूरते पूरी हो रही है या सिर्फ सीखने के चक्कर में अपने आप से समझौता करके जीवन यापन कर रहे है ।
तो भाइयो इन बातो को देखते हुए अगर आपको लगता है की आप सिर्फ सीखने के चक्कर में अपना ज्यादा समय बर्बाद कर रहे है, और सीखने के बाद भी यंहा पर ज्यादा पैसे मिलने वाले नहीं है तो देर किस बात की आज ही कम्पनी छोड़ दे ।
कभी भी 4-5 कमर्चारी और बिना रजिस्टर्ड वाली कम्पनी में काम न करे क्योकि ऐसे कम्पनी के कोई भी नियम क़ानून नहीं होते ये कभी भी आपको लात मर कर बाहर निकल सकते है ।
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हाँ हो सकता है की ऐसे कम्पनियों में आपका सम्पर्क सीधे सीधे मालिक से होता है और वो आपके साथ ऐसे पेश आता है । मानो आप के भरोसे ही ये कम्पनी चल रही है और अगर कभी आपने जाने अनजाने में नौकरी बदलने की बात की तो आपके साथ इमोशनल ब्लैकमेल भी करता है तो तुरंत सावधान हो जाइये ऐसे कम्पनी में तो बिलकुल न रूके । ये आपकी भविष्य को बर्बाद कर सकते है और जब तक ये बात आपके समझ में आयेगा तब तक बहुत देर हो जाएगी ।
सुझाव – अगर आप नए नए शहर में आये है तो सबसे पहले आपको जरुरत होगी अपने खर्चे चलाने की ऎसी स्थिति में आपको जो भी काम मिले सहर्ष स्वीकार करे और शुरुआत करे ।
2-3 महीने बाद जब आपकी आर्थिक स्थिति ठीक हो जाये या यूँ कहे की 10-15 दिन भी आप बैठकर खाने के लायक हो जाये तो फिर अपने काबिलियत के अनुसार नौकरी ढूंढें ।
आपकी इच्छा अनुसार नौकरी मिलने पर आप उस कम्पनी में अपना 100 प्रतिशत दीजिये जिससे आपको काम करने के तरीके , नियम कानून , लोगो के ब्यवहार आदि सब कुछ अच्छे से समझ में आ जाये ।
अब अपने तनख्वाह और काम की तुलना कीजिये की आपके काम के हिसाब से आपको पैसे मिल रहे है या नहीं अगर ऐसा नहीं है । तो देखिये की दूसरी कम्पनी में उसी काम के इतने पैसे मिल रहे है आगर ये अनुपात ज्यादा का है तो फिर देर किस बात की तुरन्त नौकरी बदले दीजिये ।
कम्पनी में कभी किसी के साथ बय्क्तिगत मत होइए ये सदा आपका नुकसान करवाती है अपने काम से काम रखिये , ऐसा भी नहीं की आप किसी से बातचीत मत कीजिये , कीजिये लेकिन एक दायरे में रहकर अपने परिवार या किसी पुरानी घटना का जिक्र किसी से मत कीजिये ।
अगर आपको लोगो को इस विषय में और जानकारी चाहिए तो हमें व्हात्सप्प नंबर पर सम्पर्क कर सकते है या कमेन्ट बॉक्स में लिख सकते है तो उस विषय पर लेख जरुर लिखा जायेगा ।
प्राइवेट कम्पनी किसी का सगा नहीं होता – प्राइवेट नौकरी कब बदले Read More »
हमारे भारत देश में संयुक्त परिवार का प्रचलन रहा है आज से 50 साल पहले संयुक्त परिवार भारी मात्रा में पाए जाते थे कुछ समय से संयुक्त परिवार मनो हमारे समाज से बिलकुल गायब होता जा रहा है ।
इसके क्या कारण है क्यों संयुक्त परिवार को लोग विकास में बाधा समझते है भाई भाई तो अलग होते ही थे परन्तु आज के समय में बेटा अपने बाप से पत्नी अपने पति से अलग रहने लगी है ।
अगर उनसे पूछो तो कहते है हमें आजादी वाली जिन्दगी जीनी है हम किसी के रोक टोक में अपना जीवन नहीं बिताना चाहते है ।
हम अपनी मर्जी से जब जहाँ चाहे आ जा सके , जो करना चाहे करे चाहे वो अच्छा हो या बुरा परन्तु हमें कोई राय देने वाला पसंद नहीं है ।
अब पहले जान लेते है की संयुक्त परिवार क्या होता है क्योकि आज की पीढ़ी इससे कोसो दूर है ।
संयुक्त परिवार
संयुक्त परिवार का मतलब है जहाँ एक ही परिवार में 2-3 पीढ़ी साथ में रहती है, जैसे परदादा – परदादी , दादा – दादी , माँ – बाप और फिर बच्चे इसमें दादा –दादी के चाहे 1 बेटा या बेटी हो या उससे अधिक सब साथ में रहते है । मतलब पूरे परिवार में सारे रिश्ते जैसे दादा –दादी , चाचा –चाची, ताऊ – ताई, चचेरे भाई – बहन , भाभिया , देवरानी जेठानी , सास- बहु सभी मिलजुलकर ख़ुशी से रहते है ।
इसमें जो भी बड़ा होता है सब उसकी आज्ञा मानते है और घर के सारे निर्णय उसी के होते है ।और यह निर्णय ऐसा नहीं की उसकी अपनी स्वार्थ के लिए होता है, इस निर्णय में पूरे परिवार की भलाई छिपी रहती है और परिवार के सभी सदस्य उसे सहर्ष स्वीकार भी करते है ।
संयुक्त परिवार के फायदे
1 -एकजुट रहना
2- आपस में प्यार की भावना जो बच्चों में भी दिखाई देती है , बच्चों को सही मार्ग दर्शन मिलता है
3-किसी एक पर काम का बोझ नहीं होता
4- अगर किसी पर दुःख आ पड़ता है तो उसे एहसास नहीं होने दिया जाता सब मिलजुलकर इसे दूर करते है
5- घर की सुरक्षा बनी रहती है
6 -आर्थिक विकास होता है क्योकि सब मिलकर काम कर रहे होते है
अब जानते है परिवार के टूटने का कारण
परिवार के टूटने में सबसे ज्यादा मुखिया की लापरवाही और एकतरफा फैसला होता है
दो से ज्यादा भाइयो में किसी एक को ज्यादा तवज्जो देना
बहुओ में कम ज्यादा सम्मान देना
कमाने और न कमाने वालो के बीच हमेशा मतभेद पैदा करना
किसी के बच्चे को कम और किसी को ज्यादा प्यार देना
बेटे की शादी के बाद उससे अलग सा ब्यवहार करना
अंत में मैं यही कहना चाहूँगा की परिवार की एकजुटता में ही सारी खुशिया समायी हुई है । परन्तु आज कल के इस डिजिटल माहौल में सब कुछ बिगड़ता जा रहा है । टीवी सीरियल और फिल्मे देखकर लोगो ले दिमाग ख़राब होते जा रहे है । यह कहना अनुचित तो नहीं होगा की यह सब एक सोची समझी साजिश के तहत हमारे देश के परिवार को तोड़ने का काम किया जा रहा है ।
इसलिए हमें जागरूक रहने की जरुरत है और अपने बच्चो को इन दकियानूसी धारावाहिकों से दूर रखे उन्हें अपनी संस्कृति और सभ्यता के बार में जानकारी दे । रामायण दिखाए जिनमे दौलत पाने के लिए नहीं त्यागने के लिए संघर्ष दिखाया गया है ।
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हमारे देश में बेरोजगारी की समस्या चरम सीमा पर है । अच्छे पढ़े लिखे लोग भी आज रोजगार के लिए दर दर भटक रहे है उनको कोई नौकरी नहीं मिल रहे है ।
यह अनुपात गावं में सबसे ज्यादा मात्रा में पाई जाती है
गाँव में किस वर्ग में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है ?
आपको बता दे की गाँव में जो निम्न वर्ग या निम्न मध्यम वर्ग (लोअर मिडिल क्लास ) के लोग है उनमे बेरोजगारी की समस्या सबसे ज्यादा पाई जाती है ।
क्या कारण है पढ़े लिखे होने के बावजूद भी वो लोग बेरोजगार होते है और शहर की तरफ पलायन करने करने को मजबूर हो जाते है ।
आज की तारीख में युवा की एक अधिक अनुपात जो की ग्रेजुअट होने के बावजूद भी बेरोजगार है और शहर में रोजगार की तलाश में भटक रही है इसका कारण है कोई तकनीकी जानकारी न होना।
गाँव में पढाई का सिलेबस सामान्य होना एक बहुत बड़ा कारण है ,आज के युवा पीढ़ी को बेरोजगार करने के लिए । आपको बता दे की गाँव में 90 प्रतिशत बच्चे हाई स्कूल और इंटर करने के बाद बी ए की पढाई करते है और उसमे भी सामान्य विषय को लेकर , क्योकि वंहा पर वही विषय पढाये जाते है ।
हिंदी, इतिहास, भूगोल, समाज शास्त्र, आदि और अंग्रेजी तो कम ही मात्रा में पढाई जाती है। अब इन विषयों में ग्रेजुएट होने के बाद इन्हें किसी और तकनीक की जानकारी नहीं होती है । फिर ये लोग सरकारी नौकरी के फार्म भरते है और 3-4 साल बर्बाद करने के बाद थक हार कर अपने किसी नजदीकी पहचान वाले के साथ रोजी रोटी के चक्कर में शहर आ जाते है, क्योकि इनकी माली हालत इतनी अच्छी नहीं होती की ये आगे की पढाई भी कर सके ।
अब एक युवक है दीपक उम्र 22 वर्ष जिसने गाँव में ग्रेजुएट की पढाई की और तमाम सरकारी फॉर्म भरने के बाद भी उसे नौकरी नहीं मिली । यंहा एक बात और है की छोटी से छोटी सरकारी नौकरी मिलने में भी लाखों का रिश्वत देना पड़ जाता है, जो की दीपक के परिवार के लिए संभव नहीं है । 2 साल बीतने के बाद घर वाले और गाँव वाले भी उसे ताने देना शुरू कर देते है, की कमाई कुछ करता नहीं और सारा दिन बस घूमता रहता है । अब चूँकि वो पढ़ा लिखा है तो किसी के यंहा मजदूरी करने में भी उसे शर्म तो आयेगी ही । फिर कुछ रिश्तेदारों का सुझाव आता है की इसकी शादी करवा दो फिर अपनी जिम्मेदारी समझ कर कमाई भी करने लगेगा । और फिर क्या एक शुभ मुहूर्त देखकर दीपक की शादी करा दी जाती है। चूँकि लड़का ग्रेजुएट है तो शादी भी ठीक ठाक हो ही जाती है, और उसमे काफी सारा पैसा खर्च कर दिया जाता है जिसका 50 प्रतिशत कर्ज में लिया होता है ।
अब दीपक के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता और उसे शहर के तरफ पलायन करना पड़ता है रोजी रोटी की तलाश में ।
यंहा आकर उसे पता चलता है की उसकी पढाई तो किसी काम की नहीं है क्योंकि उसने कोई स्किल नहीं सीखी है उसकी अंग्रेजी भी सामान्य से कम है । कई कंपनियों के ख़ाक छानने के बाद उसे हेल्पर की ही नौकरी मिल पाती है । अब चूँकि उस पर परिवार की जिम्मेदारी आ चुकी है तो किसी भी स्किल को सीखने का उसके पास समय नहीं है उसे तुरंत से पैसे कमाने की जरुरत है जिससे परिवार का खर्चा चल सके ।
फिर शुरू होता है एक ऐसा सफ़र जिसका कोई मकसद नहीं होता है अपनी जिन्दगी के 30-40 साल किसी ऐसे कम्पनी में बिता देता है, जहाँ उसके पढाई से कोई लेना देना नहीं है । उसी जगह जो कर्मचारी मात्र दसवी पास है परन्तु उनके पास स्किल है कोई तकनीकी जानकारी है वो उससे अच्छा पैसा कमा रहे है।
पढाई के सिलेबस में बदलाव जरुरी है
तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देना
पैसा कमाने के तरीके को समझाना
पैसो का मनेजमेंट कैसे करे इस पर भी जानकारी देना
नौकर की जगह मालिक बनने पर जोर देना
बिजनेस स्टार्ट अप पर फोकस करना
सिर्फ सरकारी नौकरी के भरोसे पर नहीं रहना , जो की आज के समय में नामुमकिन है
सरकार को चाहिए की गाँव में MSME सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम को बढ़ावा देना
आप सबसे निवेदन है की अपने बच्चो की पढाई पर खर्च करे परन्तु सोच समझकर किसी ऐसे विषय की पढाई जो की उसके भविष्य में कोई योगदान नहीं दे रही, उस तरफ न जाये बल्कि किसी तकनीकी शिक्षा पर पैसे खर्च करे ।
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बलात्कारी को फांसी दो
आज के इस घोर कलयुग में बेटी पर अत्चाचार को देखकर भारत माँ का सीना छलनी होता जा रहा है ।
इसी मर्म को देखते हुए आखिर में ये पंक्तिया लिखनी पड़ी जिसे भारत के हर नागरिक तक पहुंचाने की जरुरत है, और सरकार को भी जागने की ख़ास जरुरत है:
अब देख के हालत नारी की ये भारत माता रोती है,
गर बेटी की इज्जत लुट जाये , भला कहाँ वो सोती है ।
उस माँ का दर्द भला किसको, कब अन्दर तक झकझोरेगा,
उस माँ की ममता को मरने से कौन भला अब रोकेगा ।।
बेटा हो या बेटी दोनों, गोद में उसकी खेले है,
बोझ बराबर दोनों के, इस भारत माँ ने झेले है ।
जब उसने दोनों के साथ नही जरा सा भी पक्षपात किया,
फिर किस कारण इक बेटे ने उसकी बेटी से घात किया ।।
है छलनी सीना आज किया जिसका है कोई इलाज नही,
ऐसा कुकर्म करते हुए क्यों आई उसको लाज नहीं ।
हे भारत के रक्षक बनने वाले, क्या तेरी भी हौंसला टूट गया,
इक बेटी को जिसने रौदा, तेरे रहते क्यों छूट गया ।।
एक बात पूछनी तुझसे है क्या लगता तुझको पाप नहीं,
इसलिए कही तू चुप बैठा , की लड़की का तू बाप नहीं ।
गर बाकी जरा भी शर्म तुझे , तो तुझको मेरी कसम यही,
ला खीच उसे अब फांसी दे, और कर दे उसको भस्म वहीँ ।।
गर भारत माँ अब रोएगी , फिर ऐसा प्रलय आएगा,
मानव जाति का नामो निशाँ इस दुनिया से मिट जायेगा ।
इतने पर सरकार की आँखे जो न अब खुल पाएंगी ,
अकेलानंद का दावा है वो मिटटी में मिल जाएगी ।।
भारत माता की पुकार – बंद करो बेटी पर अत्याचार – हिंदी कविता आन्दोलन Read More »
हमारे देश में सभी राष्ट्रीय त्योहारों पर चाहे वो गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रता दिवस , हम सभी देशवासी बड़ी धूमधाम से मनाते है और करोडो की मात्रा में तिरंगा फहराया जाता है ।
परन्तु जरा सोचिये उसके अगले दिन उन तिरंगो का क्या होता है ? क्या उसे उचित जगह हम रखते है या यूँ ही इधर उधर फेंक देते है ।
इसी सन्दर्भ में ये रचना है । आजादी का दिन है और तिरंगा फहराने की तैयारी चल रही है जिस खम्भे से उसे बांधकर फहराया जाना है , वो खम्भा उस तिरंगे से क्या कहता है इसे पढ़े :
ऐ तिरंगे आज बहुत नाज तो होगा तुझे,
आसमान की बुलंदियों में तुझे लहराया जायेगा।
जो कभी झुकते नहीं थे मंदिर या दरगाहो में
उनके सिर भी तू अपने कदमों में झुका पायेगा।
पर क्या हकीकत है ये तझसे बेहतर कौन जनता है
इस देश का ही एक तबका तुझे अपना नहीं मानता है।
आज वो जो बात करते त्याग और बलिदान की,
वो कल किसी कोठे या मदिरालय में खड़ा होगा,
आज जो इतनी इज़्ज़त बक्शी जा रही तुझे,
अफ़सोस कल किसी गली के कूड़े में पड़ा होगा ।
देश भक्ति का ये नशा बस है दिखावा आज का
सच नहीं सब झूठ है, छलावा है बस ताज का।
दिन अस्त होते ही भुला देंगे तुझे ये आज ही,
फिर से तेरी याद अगले सत्र सबको आएगा ।
फिर से गूज उठेगी जयकारे तेरे नाम से
और फिर एकबार तू आकाश में लहराएगा ।।
आप सब से निवेदन है की तिरंगे को सम्मान के साथ उचित स्थान पर रखे ।
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कवि बीरेंद्र गौतम – अकेलानन्द
तिरंगा हमारी शान – तिरंगे का करे सम्मान Read More »
आज के इस दौर मे कावरियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और ये छोटे छोटे गावों से ज्यादा संख्या मे कांवड़ यात्रा मे लोग शामिल हो रहे है। और गौरतलब करने वाली बात ये है की इसमें निचले और निम्न मध्यम वर्ग के लोग ही ज्यादा बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे है। एक प्रश्न जो मेरे मन मे ज्यादा खटकती है की ये लोग भाँग के नशे मे लिप्त रहने को अपने आपको शिव भक्त दर्शाते है और उदाहरण देते है की ये तो भोले बाबा का प्रसाद है। और इन सबको बढ़ावा देने के लिए तरह- तरह के गाने भी बाजार मे उतार दिए जाते है। एक तो ये निम्न वर्ग के लोग कम पढ़े लिखें भी होते है और ज़ब भक्ति के साथ नशा करने का छूट इनको मिल जाये तो फिर इन्हे कोई भी नहीं समझा सकता।
आज कल जो प्रचलन है की गांजा भाँग पीकर और बोलबम का जयकारा करते हुए सडक पर उतर जाओ तो आप बहुत बड़े शिव भक्त है। ये अफवाह इतनी तेजी से फैला है की हर कोई इसका अनुसरण कर रहा है। क्या शिव जी गांजा भाँग का नशा करते थे?
ये किस ग्रन्थ मे लिखा हुआ है, इसके आज तक कोई प्रमाण नहीं मिले है।
दूसरी बात की ये की आज के तथाकथित धर्म के प्रवक्ता या ठेकेदार जो भी कहले, इन्हे भी इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता, की हमारे धर्म को किस तरह से गलत दिशा मे धकेला जा रहा है। और फर्क पड़े भी तो कैसे क्योंकि इन्हे मालूम है इस नशे की दलदल मे उच्च वर्ग या ज्यादा पढ़ा लिखा तबका तो बचा हुआ है और जो इनमे शामिल है उनसे इन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता।
भक्ति का मतलब ये है की आपकी वजह से बाकी लोगों को किसी भी तरह का कष्ट न हो, परन्तु काँवड़ यात्रा के दौरान कुछ लोग इस तरह से ब्यवहार करते हैं की आम नागरिक की नजर मे ये मात्र एक नशेड़ी और बावरे ही साबित होते है।
अभी हाल मे ही 3 दिन तक राजमार्ग अवरोधित रहा जिससे न जाने कितने का नुक्सान हुआ। जिन लोगों को जरुरी काम से जाना था उन्हें वापिस आना पड़ा। अब जरा सोचिये क्या उन लोगों के दिल से इन कावरियों के लिए अच्छे विचार तो नहीं निकलेंगे। चाहिए ये था की सुचारु रूप से यातायात भी चलता रहे और कांवड़ यात्रा भी बाधित न हो। परन्तु सरकार इन कुछ भक्त लोगों का पक्ष लेकर अपना वोट बैंक बढ़ाने की कोशिश कर रही है।
सभी तथाकथित भक्तो से निवेदन है की मात्र दिखावे के लिए ही शिव भक्ति न करे , इसको फैशन के रूप में न ले । एक अच्छा सा गेरुआ कपडा पहन लिए कंधे में गंगा जल टांग लिए और आठ दस फोटो खींच कर शोषल मीडिया पर डाल दिया , कुछ लोगो ने लाइक और कमेन्ट कर दिया बस आपकी भक्ति सफल हो गयी । शिवत्व एक साधना है, त्याग है, लोगो के प्रति सद्भावना है न की मात्र दिखावा ।
कांवड़ यात्रा एक पवित्र यात्रा है जो सावन मास मे अपने आराध्य शिव जी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। गंगा जल भर कर शिव जी की अर्पित किया जाता है, इसमें श्रद्धांलू नंगे पैर कई किलोमीटर की यात्रा पैदल ही चलते है। ऐसे श्रद्धांलुओं को नमन है परन्तु कुछ नकारात्मक लोगों की वजह से इस कांवड़ यात्रा का परिहास नहीं होना चाहिए ये भी हमारा ही कर्तव्य बनता है की समाज से कुरीतियों को खत्म किया जाये। और सही मायने मे कांवड़ यात्रा को सफल बनाया जायेगा।
ॐ नमः शिवाय
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कवि- बीरेंद्र गौतम “अकेलानंद”
तर्ज– आओ बच्चों तुम्हे दिखाएँ झांकी हिंदुस्तान की
आओ किस्सा तुम्हे सुनाये , पतियों के अपमान की
बचना चाहो तो बात सुनो , अकेलानंद महान की
“घरवाली की जय बोलो घर वाली की जय ”
आज सुबह ही पत्नी मेरी बहुत हुई थी गुस्सा,
उसी भाव में उसने मुझको एक लगाया घूसा । घर वाली की जय बोलो -2
घूसा खाकर मै तो मानो खुद में सिमट गया था,
पास में बैठा बेटा मेरा उससे लिपट गया था ।
बेटा बोला सुन मेरी माँ तूने पापा को क्यों मारा,
पहले मेरे आंसू पोंछे फिर मम्मी को ललकारा ।।घर वाली की जय बोलो -2
पहले पत्नी मुस्काई फिर हाथ उठाया चिमटा,
देख नज़ारा बेटा मेरा गोदी में आ सिमटा ।
अभी तलक जो कुछ थी ठंडी, अब बन गयी थी चंडी,
हम दोनों ऐसे चिल्लाये जैसे हो सब्जी मंडी ।। घर वाली की जय बोलो -2
हाथ जोड़कर मैंने पूंछा मेरी क्या गलती है,
केवल तेरा राज नहीं, कुछ मेरी भी चलती है ।
बस इतना सुनना था की वो नागिन सी फुफकारी,
उस चिमटे से कहाँ कहाँ जाने फिर हमको मारी ।। घर वाली की जय बोलो -2
अब तक मैं था समझ गया ये केवल उसका घर है,
वो इस घर की मालकिन और हम तो बस नौकर है ।
आप सभी से विनती मेरी पत्नी का सम्मान करो ,
जो न पिटना चाहो तो पूरे हर अरमान करो ।।
‘घर वाली की जय बोलो घर वाली की जय ”
पति पत्नी हास्य कविता – पत्नी का आतंक Read More »
आजकल हर चौराहे पर कोई बूढी माँ भीख मांगते हुए नजर आ ही जायेगी, परन्तु एक फर्क है पहले सिर्फ मांगते थे परन्तु आज कल हाथ में कोई न कोई सामान जैसे कलम, या पेंसिल होता है ….
अकेलानंद की लिखी हुई रचना इसी विषय पर आधारित है –
देखी एक नारी थी किसी की महतारी,
आज बनके भिखारी वो बेचारी नजर आती है ।
दिल में अरमान लिए हाथ में सामान लिए,
हथेली पर जान लिए भागी चली जाती है ।।
हाथ जोड़ बोलती वो आधी सांस छोडती वो,
एक एक करके सभी के पास जाती है ।
कोई दुत्कार देता कोई फटकार देता,
कोई कुछ देता पर बुरा नहीं वो मानती है ।।
अपने अतीत को याद करते हुए.
बेटी होती है पराई, बन बहु घर आई,
खूब बजी शहनाई हुई उसकी सगाई थी ।
बीता कुछ साल हुआ सुन्दर सा लाल,
खूब मचा था धमाल, खुशहाली बड़ी आयी थी ।।
गए दिन रैन खुशियों से भरे नैन,
आज दूल्हा बनकर बेटा घोड़ी पर सवार था ।
बहू सुंदर सी आयी थी दहेज़ खूब लायी,
अपने रंग रूप का उसको खुमार था ।।
बोली एक बात सुनो मेरे प्राणनाथ,
नहीं ऐसे है हालात जो इनको भी पालो तुम ।।
मानो मेरा कहना नहीं संग इनके रहना,
आज ही माँ बाप को घर से निकालो तुम ।
है किस्मत की मारी अब बनी दुखियारी,
आज अपनों से हारी सारी दुनिया ये जानती है ।।
कोई नहीं अपना जो पूरा करे सपना,
अपने पराये सबको वो पहचानती है ।
आखिर में आप सबसे एक बात कहना चाहूँगा की माँ बाप को घर से निकालने में बहू का हाथ होता है,
परन्तु एक कड़वा सच ये भी है की इसमें बेटे का भी साथ होता है
है बिनती हमारी सुनो बेटा बहू प्यारी,
माँ बाप की जो सेवा की तो सारे सुख पाओगे ।
किया घर से बेघर दुखी होगा ईश्वर।
फिर एक दिन तुम भी बेघर किये जाओगे ।।
कवि – बीरेंद्र गौतम “अकेलानंद”
माँ बनी भिखारिन …… Read More »
नेता जी का कथन –
रुपया या पैसा नगद लोगे तुम
या बिजली पानी मुफत लोगे तुम
वोटर मेरे ये बता दे मुझे
मुझे वोट देने का क्या लोगे तुम
बस में फ्री का टिकट लोगे तुम
या वादों के मीठे शब्द लोगे तुम
चाचा मेरे ये बता दो मुझे
मुझे वोट देने का क्या लोगे तुम
अरे कुछ तो बोल, मुंह तो खोल
दारु की नदिया बहा दुंगा
जिस भी हिरोइन का नाम बता
गलियों में तेरे नचा दुंगा
अब पीने की कोई जगह लोगे तुम
चखने में चिकन मटन लोगे तुम
वोटर मेरे ये बता दे मुझे
मुझे वोट देने का क्या लोगे तुम
वोटर का जवाब –
झूठा है वादा तेरा, ऐतबार कोई नहीं
बेईमान सब है बड़े, इमानदार कोई नहीं
तू स्वार्थी है कपटी है , पागल बनाता है
जब जीत जाता है आँखे दिखाता है
अपना भी जमीर है ऐसा थोड़े होता है
वोट के बदले सदा नोट नहीं होता है
अरे जिसको भी चाहे पिला दोगे तुम
नशे में साथ अपने मिला लोगे तुम
नेता मेरे ये बता दे मुझे ,
यंहा से भाग जाने का क्या लोगे तुम
मेरे देश को बचाने का क्या लोगे तुम
मुझे वोट देने का क्या लोगे तुम Read More »
मुझको मेरे गाँव की होली याद बहुत आती है ।
बहती पुरवाई मानो दिल खींच गाँव ले जाती है ।।
मुझको मेरे गाँव की होली याद बहुत आती है ।।
फाल्गुन मॉस के आते ही इक अलग नशा छा जाता था ,
हंसी ठिठोली ताने बोली का माहौल बन जाता था ।
दादा बाबा ताऊ चाचा एक संग हो जाते थे ,
फगुआ गाते धूम मचाते मिलकर रंग जमाते थे ।।
वो मधुर तान और गाने की बोली कानो में अभी सुनाती है ,
मुझको मेरे गावं की होली याद बहुत आती है ।।
पूरे साल भले लड़ते हो, चाहे दुश्मनी जानी हो,
होली के दिन ऐसे मिलते जैसे रिश्ता बहुत पुरानी हो ।
चाची जो गली बकती थी , फूटे आँख नहीं सुहाती थी ,
पर उस दिन पकवान बनाकर, पहले मुझे खिलाती थी ।।
वो गुलगुला, गुझिया मालपुआ की खुशबू अब ललचाती है ,
मुझको मेरे गाँव की होली याद बहुत आती है ।।
वो पहली बार जब मैंने उसके गाल पर रंग लगाया था,
उस पल मानो जैसे कोई बड़ा खजाना पाया था ।
कुछ चिढ़ी थी वो कुछ शरमाई भी, मैं था डर से काँप गया,
बाल्टी कर रंग लेकर दौड़ी तो उसका मनसा भांप गया ।
जो शर्ट रंगी थी आज भी उसके होने का एहसास कराती है ,
मुझको मेरे गाँव की होली याद बहुत आती है ।।
बड़े हुए तो शहर आ गए रुपये बहुत कमाने को ,
तब से मौका नहीं मिला होली पर गाँव को जाने को ।
हरा लाल नारंगी पीला कितने रंग लुभाती थी,
गाँव की होली का रंग तन मन अन्दर तक रंग जाती थी ।।
शहर की होली का रंग मानो कपड़े ही रंग पाती है ,
मुझको मेरे गाँव की होली याद बहुत आती है ।।
मुझको मेरे गाँव की होली याद बहुत आती है Read More »