काव्य

तन्हा दिल

कभी जो दिल मे रहते थे हमदर्द बनकर मेरे,

जुदाई उनकी मुझको एक नई सौगात दे गई।

कुछ साथ रहकर भी गैरो का साथ देते रहे,

वो जिंदगी भर साथ देने के लिये,

मेरा साथ छोड़ गई……

 

सुलझी हुई थी जुल्फे, आंखों में खुशनमी थी,

जाने थी क्या बला वो, शायद ही कुछ कमी थी।

चाहेगी वो उसे ही, या चाहता है वो भी उसको।

उन दोनो को ही नही, सबको गलतफहमी थी।।

इसे भी पढ़े -ऐ तिरंगे आज बहुत नाज़ तो होगा तुझे

तन्हा दिल Read More »