2025

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कविता

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पत्नी

पत्नी 

 

पत्नी है जान मेरी
‎पत्नी है शान मेरी
‎हर पल पत्नी हीं
‎रखती है ध्यान मेरी
‎पत्नी हीं ध्यान है
‎पत्नी हीं ज्ञान है
‎सभी देविओं में सिर्फ
‎पत्नी महान है
‎पत्नी सुबह होती
‎पत्नी हीं शाम है
‎पत्नी के दया से हीं
‎बनते सब काम है
‎पत्नी हीं भूख होती
‎पत्नी हीं प्यास है
‎सुख दुख गम की
‎पत्नी हीं रास है
‎पत्नी बनाती घर
‎पत्नी सजाती घर
‎पत्नी से हीं मिलती
‎चैन की सांस है
‎पत्नी के साथ रहो
‎जो वो चाहे वही कहो
‎वरना पूरे घर की
‎करतीं विनाश है

इसे भी पढ़े : बात बात मुझसे ब्रेकअप करती है 

कवि बीरेंद्र गौतम “अकेलानंद”

बस्ती-उत्तर प्रदेश 

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शूद्र की चेतना एवं सच्चा हिन्दू कौन ?

शूद्र की चेतना एवं सच्चा हिन्दू कौन ?

जाग उठो सारे हिन्दू भाइयो और एक हो जाओ वर्ना 

 

बटेंगे तो कटेंगे  , बंटे है तभी कट रहे है

 

कौन काटेगा  कौन बाँटेगा , ‎सच्चा हिन्दू कौन छाँटेगा 

‎आज धर्म की  बात करेंगे, ‎पीछे फिर बर्बाद करेंगे

‎अभी तलक क्यो सोये थे, ‎जब हम निचले रोये थे 

तब तक क्या हम हिन्दू ना थे, ‎तेरे धर्म के बिंदु न थे

शुद्रो पर अत्याचार

 

 

 

 

 

 

तब तुमने फटकार दिया, ‎कुत्ते सा दुत्कार दिया

‎गले मे हांडी डाली थी , ‎कहते हमको गाली थी

‎तेरे राह न चलते थे, ‎गन्दगियो मे पलते थे

‎ना पढ़ने लिखने का हक़ था, ‎पास ना धन् रखने का हक था

हिन्दू ग्रन्थ बनाम संविधान

तुमने वेद पुराण बनाया, ‎33 करोड़ भगवान बनाया

‎मंदिर की भरमार हुई, ‎फिर जाति एक लाचार हुई

‎चार जगह से जन्म दिखाया, ‎खुद को मुख से उतपन्न बताया

शूद्र – शूद्र कहकर चिल्लाये, ‎सबके मन मे जहर फैलाये

 

ग्रंथो में लिखे सबूत

हम खुद से ही शर्माते थे, ‎और मुखड़ा सदा छिपाते थे

‎तुम तो भगवान के प्यारे थे, ‎हम पिछले जन्म के मारे थे

‎कुछ ऐसा ही पाठ पढ़ाया, ‎स्वर्ग नरक का डर दिखलाया

‎फिर एक मसीहा जाग उठा, ‎दिल में सबके तूफ़ान उठा

संविधान निर्माता बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर

‎जिस दिन लागू सविधान हुआ, ‎वो हम सबका भगवान हुआ

‎तब जाकर हम इंसान बने, ‎फिर पढ़ लिखकर धनवान बने

‎अब तुमने जो गुमराह किया, ‎है वादा तुम्हे न छोड़ेंगे

‎जितने वर्षो तक हमें सताया, ‎उतने टुकड़ो में तोड़ेंगे

‎हम बौद्ध धर्म अनुयायी है, ‎ना बैर किसी से करते है

‎पर बात अगर अभिमान की हो, ‎फिर मरने से ना डरते है

‎है देश में डंका बाज रहा, ‎आज जय भीम के नारो से

‎शिक्षित और संगठित रहो, ‎ना डरना इन गद्दारों से.

‎इसे भी पढ़े : हिन्दू धर्म में दलितों का स्थान 

 

कवि बीरेंद्र गौतम “अकेलानंद”

जिला बस्ती , उत्तर प्रदेश

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कौन हूँ मैं

कौन हूँ मैं

कौन हूँ मैं, मैं कौन हूँ

आन हूँ मैं बान हूँ

खुद की अपनी शान हूँ

जिन्दगी में कौन मेरा

मैं तो खुद की जान हूँ

कौन हूँ मैं , मैं कौन हूँ

सपनो का मैं राही हूँ

मैं निडर सिपाही हूँ

अपनी बलि चढाने को

खुद ही मैं कसाई हूँ

कौन हूँ मैं , मैं कौन हूँ

ना मेरा कोई प्यार है

न किसी से इजहार है

तन्हाई में मैं जीता हूँ

तन्हाई मेरा यार है

कौन हूँ मैं, मैं, कौन हूँ

कोई ख्वाब मेरा तोड़ गया

मझधार में ही छोड़ गया

एहसान किया उसने मुझ पर

मुझको मुझसे जोड़ गया

कौन हूँ मैं, मैं कौन हूँ

अब तो मैं रुकुंगा नहीं

अब कभी झुकूँगा नहीं

वो खुद को चाहे मार दे

पर साथ दे सकूँगा नहीं

कौन हूँ मैं, मैं कौन हूँ

अब किसी की सुनना नहीं

साथी कोई चुनना नहीं

शांत हो चूका हूँ मैं

ख्वाब कोई बुनना नहीं

अब मौन हूँ मैं, हां मैं मौन हूँ

कवि बीरेंद्र गौतम “अकेलानंद “

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दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न

 

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न,

घिरा पड़ा हूँ अंधकार से आकर राह दिखाओ न ।

बचपन में चलते चलते जब घुटने पर गिर जाता था ,

मिट्टी कीचड़ में सन करके मैं गंदा हो जाता था ।।

रोते रोते सूनी आँखे आंसू से भर जाती थी ,

माता भी गुस्से में जब पास न मेरे आती थी ।

झुकी कमर से भी तुम तब ऐसी दौड़ लगाते थे,

राजा बेटा मेरा कहकर फ़ौरन गोद उठाते थे ।।

आज गिरा हालात में फसकर फिर से मुझे उठाओ न ।

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न ।।

राजा रानी, घोड़े हाथी के किस्से  रोज सुनाते थे,

मुझे बिठा कर पीठ पर अपने खुद घोडा बन जाते थे ।

कभी सहारा बनू आपका , मुझको चलना सिखलाया,

सही गलत में फर्क भी करना तुमने मुझको बतलाया ।।

आज जमाना बदल चुका है समझ नहीं कोई आता ,

रहे सामने साथी बनकर पीछे से गला दबा जाता ।

कौन है अपना कौन पराया फिर मुझको समझाओ न,

फिर से गिरा मुसीबत में अब इससे मुझे बचाओ न ।।

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न ।

घिरा पड़ा हूँ अंधकार से आकर राह दिखाओ न ।।

 

कवि बीरेंद्र गौतम ” अकेलानन्द”

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हंसो हमेशा जिन्दगी में 

हंसो हमेशा जिन्दगी में 

 

किसी बात पर हंसो , कभी बिन बात पर हंसो 

हालत नहीं अच्छे तो, अपने हालात पर हंसो 

हंसो हर दिन पर और हर रात पर हंसो 

कभी जुदाई पर हंसो तो, कभी मुलाकात पर हंसो 

अपने हार पर हंसो, फिर उसी जज्बात पर हंसो 

किसी  ने दी नहीं कभी , हर उस सौगात पर हंसो 

ज़माना हंस रहा तुम पर, उस सवालात पर हंसो 

हंसो हरदम की जब तक, तुम्हारे अंदर सांस बाकी है 

और जब अंत हो नजदीक , तो उस कायनात पर हंसो 

सदा उदास रहने से, सब कुछ बिखर जाता है 

और हंसते रहने से जीवन  संवर जाता है 

अकेले में भी हंसो और सबके  साथ भी हंसो 

किसी बात पर हंसो तो कभी बिन बात पर हंसो 

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बीरेंद्र गौतम ” अकेलानंद “

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तेरा मुझसे दूर जाने का गम नहीं

तेरा मुझसे दूर जाने का गम नहीं 

 

 

तेरा मुझसे दूर जाने का कोई गम नहीं,

सुकून है इसकी वजह तो हम नहीं ।

जमाने से जाकर मेरी ही कमियाँ गिनाएगी,

फिर भी यकीं है की तेरी दलील में कोई दम नहीं ।।

 

इस हुश्न की तारीफ़ में कुछ न बोलूँगा ,

हर गम को सहते हुए छुपकर रो लूँगा ।

मालूम है उसका प्यार सिर्फ मेरा ही नहीं है ,

पर ये राज जमाने के सामने नहीं खोलूँगा ।।

 

कहने को तो बहुत कुछ है पर आप सुनते कहाँ हो ,

हमारे यादो के भी सपने आप  बुनते कहाँ हो ।

हमने तो पहली नजर में आपको अपना बना लिया,

किसी कशमकस  में आप हमें चुनते कहाँ हो ।।

 

उसकी बेरुखी को कब तक सह पाऊंगा ,

अब जाने किस हद तक चुप रह पाऊंगा ।

पता है वो शामिल है किसी गैर की महफ़िल में ,

प्यार खोने के डर से मैं कुछ न कह पाऊंगा ।।

इसे भी पढ़े- तू तडपेगी जरूर , मगर धीरे धीरे 

बीरेंद्र गौतम “अकेलानंद ”

 

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कोई दिन न बचा ऐसा कि जब तेरी याद न आई हो

कोई दिन न बचा ऐसा कि जब तेरी याद न आई हो

 

कोई दिन न बचा ऐसा

कोई दिन न बचा ऐसा की,

                      जब तेरी याद न आई हो |                    

कोई पल नहीं याद मुझे की,

जब तेरी याद न आई हो ||

यूँ तो साँसे भी छोड़ जाती है ,

एक बार को धोखा देकर |

आंसू भी आँख से गिर जाते ,

किसी अपने को खोकर ||

इक मेरा दिल ही है जिसमे ,

कोई बदलाव न आई हो |

कोई पल नहीं याद मुझे ,

की जब तेरी याद न आयी हो ||

क्या याद तनिक भी है तुझको ,

जो कसमे मिलकर खाई थी |

दोनों से पूरी दुनिया थी ,

बाकी सब लगी परायी थी ||

हैरान नहीं हूँ मैं तुझ पर ,

इक वादा भी अगर निभाई हो |

कोई पल नही याद मुझे की ,

जब तेरी याद न आयी हो ||

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                   बीरेंद्र गौतम “अकेलानंद ” 

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हसरत उसे पाने की पूरी न हो सकी

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इन्तहा इंतजार की ख़त्म होती नहीं

इन्तहा इंतजार की ख़त्म होती नहीं

 

बीरेंद्र गौतम ” अकेलानंद” – बस्ती

तुम आँखों से इशारा न करते अगर,

इन्तहा इंतजार की ख़त्म होती नहीं ।

बात गर दिल से की होती मुझसे कभी,

बेवजह रात भर आँख रोती नहीं ।।

प्यार था प्यार है और रहेगा सदा,

ऐतबार करना सीखा न हमने कभी ।

जो जगह दी है तुझको इस दिल ने मेरे,

यादो के धागों में फिर पिरोती नहीं।।

कोई बिछड़े कभी चाहे दूरी करे,

कितना जायज जुदाई में कोई मरे ।

जिन्दगी इतनी आसान होती अगर,

उम्र भर बोझ यादों के ढोती नहीं।।

इक मुलाकात, फिर बात बढती गयी,

फिर तेरा इश्क सर मेरी चढ़ती गयी ।

न गिरते कभी  प्यार में इस कदर,

बांहों में कसके इक रात सोती  नहीं ।।

इसे भी पढ़े – चले जाओ न आना तुम दोबारा लौटकर 

 

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