काव्य

एहसास आंसुओ के सैलाब का

एहसास आंसुओ के सैलाब का

तुम्हारी पलको के भीगने के एहसास मात्र से ही जिसका दिल रो पड़ता हो, वही तुम्हारी आँखों में आंसुओ के सैलाब से भी न पिघले, तो समझ लेना वजह बहुत ही बड़ी है l 

 “तेरी यादों में सदा खोये रहते है ,

अब तो बिना सपनों के सोये रहते है l 

तूने कभी इन आँखों की गहराई  न देखी ,

ये बिना आंसुओ के भी रोये रहते है “ll 

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जो कभी हर मुस्कान पर मरते थे

कभी जो मरते थे हर मुस्कान पर मेरी,

वो मेरी हंसी पर पहरा लगाने लगे है l

सुलाते थे जो मुझको पलकों पर अपनी,

आज रात – दिन वो जगाने लगे है ll

तरसता हूँ  मिलने को कहते थे हर पल,

अब एक पल में भगाने लगे है l

पहले तो देते है जख्म जी भरके ,

फिर बेवजह मरहम लगाने लगे है l

शिकायत करू क्या खुदा से भी अब मै,

ऐसे क्यों इंसान बनाने लगे है l

सदा टूट जाता है जब दिल तुम्हारा ,

फिर भी क्यों किस्मत आजमाने लगे है ll

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ऐ मुसाफिर आज तू, फिर से अकेला हो गया

ऐ मुसाफिर आज तू, फिर से अकेला हो गया I

महफिलों की बात क्या, एकांत में ही खो गया II  

क्यों बहकता है तू बन्दे, सुनके दो मीठे बोल के ,

छोड़ जाते है तुम्हारे, जीवन में विष घोल के I

जो जगाई आस थी विश्वास की दिल में उसे,

जो मिला  हमदर्द बनके,  दर्द देकर खो गया I

ऐ मुसाफिर आज तू,  फिर से अकेला हो गया II

चेहरे पर मुस्कान तेरे, रहते थे हर पल कभी ,

साथ तेरे रहने से, गम भूल जाते थे सभी I

दिल लगाके तूने फिर क्यों, ऐसी गलती कर डाली ,

उम्र भर आंखे न भीगी, एक पल में रो गया II

ऐ मुसाफिर आज तू, फिर से अकेला हो गया

महफिलों की बात क्या एकांत में भी खो गया II

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देखते देखते अश्क बहने लगे

देखते देखते अश्क बहने लगे

ये मुलाकात कैसी है मेरे सनम

जख्म दिल के मेरे रोके कहने लगे।।

देखते देखते   ………………..

तुमको क्या है पता कैसे जीता हूँ मै

याद में तेरी अश्को को पीता हूँ मैं

क्या कमी थी मोहब्बत में  मेरे बता

लोग क्यों  बेवफा मुझको कहने लगे।।

देखते देखते……………………

तेरी आँखों में जब मेरी तस्वीर थी

कितनी अच्छी भली अपनी तकदीर थी

दिल दुखा  करके तुमको मजा क्या मिला

जिन्दगी  मेरी मुझपे  ही हंसने लगे।।

देखते देखते ………………..

गम जुदाई का बर्दाश्त होता नहीं

इस जमाने पे मुझको भरोसा नहीं

अब बता मुझको जीने से क्या फायदा

जिस्म से जान अब तो निकलने लगे।।

देखते देखते अश्क बहने लगे

ये मुलाकात कैसी है मेरे सनम

जख्म दिल के मेरे रोके कहने लगे।।

 

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आज की रात सिर्फ और मुझे जीना है

आज की रात सिर्फ और मुझे जीना है

आज की रात सिर्फ और मुझे जीना है I

जाम  बोतल से नहीं आँखों से पीना है II

बहुत रुसवाई, मिलन जुदाई हो चुके है ,

जाने कितने पल खुशियों के खो चुके है I

खाते थे एक दूजे पर मरने मिटने की कसमे,

फिर भी जाने कितनी दफा बेवजह रो चुके है I

मेरे सिवा भी जाने कितनो की वो हसीना है ,

आज की रात सिर्फ और मुझे जीना है II

जाम बोतल से नहीं आँखों से पीना है II

वो बेवकूफी भरी मेरी जो हालात थी,

याद आती है वो जो पहली मुलाकात थी I

उसके हुश्न और सादगी पर मर मिटा था ,

लुट चुकी उस पर मेरी हर जज्बात थी I

खत्म हो चुकी तुझसे मेरी हर तमन्ना है ,

आज की रात सिर्फ और मुझे जीना है II

जाम बोतल से नहीं आँखों से पीना है  II

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वो लम्हा अब भी मुझे याद आता है

वो लम्हा अब भी मुझे याद  आता है II

वो पहली बार जब तुमसे नजरे मिली थी

मानो क्यारी की हर इक कलिया खिली थी

मन मेरा उमंगो से भर उठा था

दिल की धड़कने तेज हो गयी थी

इक टक देखता ही रह गया था

मेरी चेतना जाने कहाँ खो गयी थी

पल पल की वो याद अब भी  सताता है I

वो लम्हा अब भी मुझे याद आता है II

कुछ दिन हो चले थे

कुछ शिकवे तो कुछ गिले थे

रहते थे साथ हरदम

जैसे कब के बिछड़े मिले थे

उसकी  मुस्कराने की अदाये

 खुशबू से भर जाती थी फिजाये

मै मदहोश हो चला था

कुछ यूँ ही सिलसिला था

वो खुशबू अब भी सांसो में समां जाता है I

वो लम्हा अब भी मुझे याद आता है II

उसका रोज मन्दिर में पूजा करना

नजरे बचाकर मुझे देखा करना

टीका  लगाती बड़े प्यार से

फिर छूकर भी अनदेखा करना

मेरी हर बातो का समर्थन करती

घंटो बैठकर जाने क्या मंथन करती

फिर इक दिन कुछ ऐसा लम्हा आया

न बीतने वाला तन्हा मौसम लाया

रह रहकर मुझे तडपा जाता है I

वो लम्हा अब  भी मुझे याद आता है II


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पति-पत्नी नोंक – झोंक वाली कविता

5/5

एक पति-पत्नी कच्चे मकान में रह रहे है, थोड़ी नोक झोक के साथ उनकी दिनचर्या चल रही है I अब सुनते है उनकी इसी रोजरोज  की नोंक झोंक की एक झलक  –

पत्नी- सुनते हो जी 

पति – मै तो बहरा हूँ जी ।

पत्नी- आप तो बुरा मान गए ।

पति- हम आप की चाल जान गये ।

पत्री- आज क्या खाओगे , जो कहो वो बनाऊ ।

पति- मै मुर्ख हूँ जो आपनी मनपसन्द चीज बताऊ ।

पत्नी- ऐसे क्यों कहते हो , मैंने कब की है अपनी मनमर्जी ।

पति – करोगी जो तेरे मन में है, फिर मै क्यों लगाऊ  अर्जी ।

पत्नी- मेरे पास आओ अब दूर न जाओ, खूब सेवा करुँगी तुम्हारी ।

पति – मैं जानता हूँ खूब पहचानता हूँ, क्या मेरी मति गई है मारी ।

पत्नी – आ भी जाओ काम बहुत है , कुछ तुम करो कुछ मैं करू ।

पति- यह  सब तेरी जिम्मेदारी है , बेवजह ही मैं क्यों मरूं ।

पत्नी- मरे आपके दुश्मन , कुछ अच्छा खाने को है मेरा  मन ।

पति- लाला के यहाँ से कुछ मँगा ले, जो मर्जी है बनाले ।

पत्नी- लाला का बहुत उधार है, हमेशा पैसे ही मांगता है ।

पति- किसी का उधार  हमने दिया है,  क्या वो नहीं जानता है ।

पत्नी – इतना भी अच्छा नहीं होता, कर्जा चुका देना चाहिए ।

पति- तो जल्दी से मायके से अपने कुछ रूपये लेकर आईये ।

पत्नी- आप बात – बात पर मेरे मायके को मत लाया करो ।

         ये सब कहना  व्यर्थ है , हमेशा न सताया करो ।।

पति – मैंने तुझे कब कब सताया है, झूठ कहते तुझे शर्म नहीं आती ।

    मैं तेरे मायके को नहीं लाता, पर तू मेरे बाप पर जरुर है जाती ।।

पत्नी – वैसे तो मैं आपकी धर्मपत्नी हूँ , अर्धान्ग्निनी हूँ , सहभागिनी हूँ ।

         नाम भी महालक्ष्मी रखा है,  पर इस घर में अभागिनी हूँ ।।

पति- तू तो फिर भी भाग्यशाली है जो मेरे जैसा पति मिला है ।

         वर्ना मुझे पता है मायके में तेरा क्या क्या गुल खिला है ।।

पत्नी- ये सब कहते शर्म नहीं आती, मुझ पर इल्जाम लगाते हो ।

       खुद निकम्मे घर पर बैठकर जाने क्या क्या गुल खिलाते हो ।।

पति – अपने पति को निकम्मा कहते हुए तेरी जुबान नहीं कटती है।

         इतना ही बुरा हूँ अगर तो मुझसे ही सदा क्यों सटती है ।।

पत्नी – इस तरह से ताने यू हमको न मारो ।

        तुम्ही मेरे देवदास मै तुम्हारी पारो ।।

पति – तुम्हारी इसी अदा पर तो हम मरते है ।

         सच कहे हम सिर्फ तुमसे प्यार करते है ।।

पत्नी – छोडो इन बातो को कहो क्या बनाऊ ।

पति – पहले लाला से कुछ सामान उधार ले आऊ ।

इसी तरह से दोनों पति पत्नी ख़ुशी से रहते है ।

सिर्फ मन बहलाने के लिए ही झगड़ा करते है ।

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पिता ही परम-पिता

तू मंदिर मंदिर भटक रहा , जिस प्रभु का करने को नमन I
इक भगवान है भूखा बैठा , जिसने दी है तुझको जीवन II
चढ़ा रहा फल फूल  मिठाई, धूप  नैवेद्य  करता अर्पण I
एक बूंद प्यास को तरस रहा, तेरे खातिर सब किया समर्पण II
अपने सपने पाने की खातिर, घुटने टेक करता विनती I
उसने तुझ पर कुर्बान किये, निज सपनों की न कोई गिनती II
इस पिता की आज्ञा से रामचंद्र, नर से नारायण तुल्य हुए I
पितृ भक्ति से न जाने कितने, सादे जीवन बहुमूल्य हुए II
जिस प्यार भाव से ऐ  बंदे, उस प्रभु का तू करता गुणगान I
बस एक बार दिल से पुकार, उस पिता को भी देकर सम्मान II
जो अब तक तुझको नही मिला, सच मान वो सब मिल जायेगा I
जो पूरा न कर सके  देवी देवता,  इक आशीर्वाद कर जायेगा II

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इतने तो खुशकिस्मत नहीं जो किसी का प्यार मिल जाये।

इतने तो खुशकिस्मत नहीं जो किसी का प्यार मिल जाये।

पल भर का साथ ही काफी है जिंदगी गुजारने के लिए।।

वो जरा साथ क्या आये हम प्यार समझ बैठे।

उनकी मीठी यादों के हक़दार समझ बैठे।।

मेरे उम्र भर की हंसी,उनके मुस्कान से कम  है

बेमतलब ही एक मतलबी को यार समझ बैठे।।

खुद को आईने में देखते ही, वो मुझको आइना दिखा गयी।

अपने औकात के मुताबिक, प्यार करना सिखा गयी।।

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तर्ज- तूने मुझे बुलाया मेरी वाली ए……..

तूने मुझे बुलाया मेरी वाली ए..

मैं भागा- भागा आया मेरी वाली ए…

वो बेलन वालिये वो चिमटा वालिये

वो झाड़ू वालिये वो सैंडल वालिये..

तूने मुझे बुलाया मेरी वाली…. ए

मैं भागा- भागा आया मेरी वालिए।।

आंखों पर था मैं पट्टी बाँधा

समझा था तुझे कृष्ण की राधा

सारे लोगों ने समझाया

अपना अपना दुखड़ा सुनाया

पर मैं समझ न पाया उनकीं वाली ए..

तेरे जाल में फंसता आया सबकी वालिये।

तूने मुझे बुलाया मेरी वाली ए….

मैं भागा भागा आया मेरी वाली ए……।।

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”हमारा तिरंगा हमारी शान ”

ऐ तिरंगे आज बहुत नाज तो होगा तुझे,
आसमान की बुलंदियों में तुझे लहराया जायेगा।
जो कभी झुकते नहीं थे मंदिर या दरगाहो में
उनके सिर भी तू अपने कदमों में झुका पायेगा।

पर क्या हकीकत है ये तझसे बेहतर कौन जनता है
इस देश का ही एक तबका तुझे अपना नहीं मानता है।

आज वो जो बात करते त्याग और बलिदान की,
वो कल किसी कोठे या मदिरालय में खड़ा होगा,
आज जो इतनी इज़्ज़त बक्शी जा रही तुझे,
अफ़सोस कल किसी गली के कूड़े में पड़ा होगा ।

देश भक्ति का ये नशा बस है दिखावा आज का
सच नहीं सब झूठ है, छलावा है बस ताज का।

दिन अस्त होते ही भुला देंगे तुझे ये आज ही
फिर से तेरी याद अगले सत्र सबको आएगा
फिर से गूज उठेगी जयकारे तेरे नाम से
और फिर एकबार तू आकाश में लहराएग।।

अकेलानन्द

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भला किसी का कर न सको तो

बुरा किसी का कर न सको तो,

भला किसी का मत करना।

कांटे बनकर चुभ न सको तो,

बनकर फूल तू मत रहना।।

बन न सको हैवान अगर तुम,

कम से कम शैतान बनो।

नही कभी भगवान बनो तुम,

न ही कभी इंसान बनो।

पापकर्म अपना न सको तो,

पुण्य के पथ पर मत चलना।।

कांटे बनकर चुभ न सको तो,

बनकर फूल तू मत रहना।।

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तन्हा दिल

कभी जो दिल मे रहते थे हमदर्द बनकर मेरे,

जुदाई उनकी मुझको एक नई सौगात दे गई।

कुछ साथ रहकर भी गैरो का साथ देते रहे,

वो जिंदगी भर साथ देने के लिये,

मेरा साथ छोड़ गई……

 

सुलझी हुई थी जुल्फे, आंखों में खुशनमी थी,

जाने थी क्या बला वो, शायद ही कुछ कमी थी।

चाहेगी वो उसे ही, या चाहता है वो भी उसको।

उन दोनो को ही नही, सबको गलतफहमी थी।।

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