हम दोनों कुछ यूँ ही मिले थे,
न जाने कब के सिलसिले थे l
प्यार हमें बिना तर्क था ,
लेकिन उसमे कुछ फर्क था ll
मैं सच्ची मोहब्बत करता था,
वो कच्ची मोहब्बत करती थी l
मैं जी जान से उसपर मरता था ,
और वो टुकडो में मरती थी ll
दिल की बातें अपने दिल से ,
मैं रोज उसे बतलाता था l
है इश्क मुझसे तुमसे कितना,
बस हर पल यही जताता था ll
वो आधे मन से मेरी बातें,
सुन करके बात घुमा देती l
प्यार से नजर मिलाने पर,
वो पलके अपनी झुका लेती ll
मैं समझा था है शर्मीली,
इसलिए वो नजर झुकाती है l
है कुछ तो प्यार उसे मुझसे,
वो तभी तो मिलने आती है ll
मेरे लिए संकल्प थी वो,
मैं उसके लिए विकल्प सदा l
वो मेरे हर साँस में बसती थी ,
मैं जीवन में उसके यदा कदा ll
वो छोड़ मुझे जा सकती है ,
मैं फिर भी उसको चाहूँगा l
वो प्यार भी केवल मेरा था,
अब मैं ही उसे निभाऊंगा ll
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