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इन्तहा इंतजार की ख़त्म होती नहीं

इन्तहा इंतजार की ख़त्म होती नहीं

 

बीरेंद्र गौतम ” अकेलानंद” – बस्ती

तुम आँखों से इशारा न करते अगर,

इन्तहा इंतजार की ख़त्म होती नहीं ।

बात गर दिल से की होती मुझसे कभी,

बेवजह रात भर आँख रोती नहीं ।।

प्यार था प्यार है और रहेगा सदा,

ऐतबार करना सीखा न हमने कभी ।

जो जगह दी है तुझको इस दिल ने मेरे,

यादो के धागों में फिर पिरोती नहीं।।

कोई बिछड़े कभी चाहे दूरी करे,

कितना जायज जुदाई में कोई मरे ।

जिन्दगी इतनी आसान होती अगर,

उम्र भर बोझ यादों के ढोती नहीं।।

इक मुलाकात, फिर बात बढती गयी,

फिर तेरा इश्क सर मेरी चढ़ती गयी ।

न गिरते कभी  प्यार में इस कदर,

बांहों में कसके इक रात सोती  नहीं ।।

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इतने तो खुशकिस्मत नहीं जो किसी का प्यार मिल जाये।

इतने तो खुशकिस्मत नहीं जो किसी का प्यार मिल जाये।

पल भर का साथ ही काफी है जिंदगी गुजारने के लिए।।

वो जरा साथ क्या आये हम प्यार समझ बैठे।

उनकी मीठी यादों के हक़दार समझ बैठे।।

मेरे उम्र भर की हंसी,उनके मुस्कान से कम  है

बेमतलब ही एक मतलबी को यार समझ बैठे।।

खुद को आईने में देखते ही, वो मुझको आइना दिखा गयी।

अपने औकात के मुताबिक, प्यार करना सिखा गयी।।

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