उठा कदम और बेपरवाह बढ़ता जा

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सौतेली माँ…

कमलदीप अपनी पत्नी और एक बेटी के साथ एक छोटे से गांव में रहता था। पूरा परिवार सुखपूर्वक रहता था। बेटी कला अभी पांच वर्ष की थी। कमलदीप एक सेठ के दुकान पर नौकरी करता था। पत्नी कमला घर के काम काज के साथ गांव में छोटे मोटे काम कर लेती। सब कुछ सही चल रहा था। अचानक एक दिन मानो उस घर को जैसे किसी की नजर लग गयी। कमला की तबियत ज्यादा खराब हो गयी। गांव में काफी इलाज के बाद भी जब हालत में सुधार नही हुई तो कमलदीप उसे लेकर शहर आ गया। शहर में उसके एक दूर के रिश्तेदर रहते थे। उन्होंने उनकी मदद की और एक अच्छे अस्पताल में भर्ती करा दिया। लेकिन हालत में सुधार होने की बजाय और खराब हो गई। सात दिन बाद उसका शरीर शांत हो गया। बेटी और पिता दोनों सिरहाने के पास मौन खड़े थे, उनकी दुनिया खत्म हो चुकी थी। आंखों से सिर्फ आंसू की धारा बहती जा रही थी।

बुझे मन से उसका अंतिम संस्कार किया। आस पास के लोगों ने उसे सान्त्वना दिया। औऱ फिर सब अपने-अपने जिन्दगी में व्यस्त हो गए। कुछ दिन बीतने के बाद उसने सोचा कि क्यो न शहर में ही रहकर कुछ काम किया जाए। गांव में अब उसे जाना अच्छा नही लग रहा था । रिश्तेदार ने उसे एक किराये का कमरा दिला दिया और एक सेठ से बात करके काम भी लगवा दिया।

सब कुछ फिर सामान्य सा हो गया था । लोगों ने समझाया कि बेटी की उम्र अभी छोटी हैं, उसे दूसरी शादी कर लेनी चाहिए। लेकिन उसने उनकी बातों को अनसुना कर दिया। एक दिन उसी रिश्तेदार के घर एक महिला आयी। उन्होंने उन दोनो की मुलाकात कराई और शादी का प्रस्ताव रखा, उनके बहुत से अहसान थे कमलदीप पर इसलिए वह मना भी न कर सका। एक निश्चित दिन पर दोनों शादी के बंधन में बंध गए।

पूरा परिवार फिर से सुखपूर्वक रहने लगा। पहले तो कमलदीप को चिंता सता रही थी कि दूसरी माँ मेरी बेटी का खयाल रखेगी या नही। लेकिन अब वह निश्चिंत हो गया था। उसकी बेटी भी नई मां के साथ घुल मिल गयी। कुछ दिन तो सब ठीक रहा लेकिन धीरे धीरे नई पत्नी के व्यवहार में बदलाव आने लगा। वह पति का भी ध्यान नही रखती। कमलदीप ने सोचा कि कोई बात नही, कम से कम मेरी बेटी तो खुश है,उसे अपनी माँ की याद नही आयेगी।

एक दिन कमलदीप काम से जल्दी आ गया। घर पहुँच कर देखा तो उसकी बेटी बिस्तर पर मुँह छिपाकर सिसक रही है। उसने पूछा तुम्हारी माँ कहाँ है, तो उसने बताया की वह तो रोज ही कही चल जाती है। कमलदीप ने सोचा रिश्तेदार के घर गयी होगी।

फिर कुछ सोचकर उसने बेटी से सवाल किया , क्या तुम्हारी नई माँ तुम्हारा ख्याल वैसे ही रखती है जैसे सगी मां करती थी। फिर बेटी ने जो जवाब दिया उसे सुनकर मानो उसे विश्वास नही हुआ!

बेटी ने कहा पहले वाली मां झूठ बोलती थी और उन्हें गिनती भी नही आती थी, लेकिन नई माँ सच बोलती है और पढ़ी लिखी भी है। पिता हैरान होकर पूछा क्यो बेटी ऐसा क्यों कह रही है।” बेटी ने बताया पहले जब मैं कोई शरारत करती तो माँ कहती थी आज कुछ खाने को नही दूंगी लेकिन कुछ देर बाद वह अपने हाथों से मुझे खिलाती थी। अगर मैं उससे एक चॉकलेट या कुछ भी मांगती तो तीन चार देती थी। लेकिन नई मां जब कहती कि खाना नही दूंगी तो वह दिन भर कुछ भी नही देती और कुछ मांगने पर उतना ही गिनकर देती।”

बेटी के इस दास्तान से उसका कलेजा हिल गया। उसने निश्चित किया कि कुछ भी हों वो उससे रिश्ता तोड़ देगा। और गांव वापिस चला जायेगा।

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स्वयं से ज्यादा किसी को न चाहो….

जिस दिन आप किसी के याद में जी न सको तो समझ लेना आप बर्बादी के द्वार पर दस्तक दे चुके हो।

किसी को भी अपनी जिंदगी में इतनी अहमियत न देना की आपके हर सांस उसके अधीन हो जाये और आपको घुटन के सिवाय कुछ भी न मिले।

मुझे अकेले खुश रहते देख भले ही ये दुनिया मुझे घमंडी क्यो न समझे, पर सच तो यह है कि मैं इस मतलबी दुनिया को समझ चुका हूँ।

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भला किसी का कर न सको तो

बुरा किसी का कर न सको तो,

भला किसी का मत करना।

कांटे बनकर चुभ न सको तो,

बनकर फूल तू मत रहना।।

बन न सको हैवान अगर तुम,

कम से कम शैतान बनो।

नही कभी भगवान बनो तुम,

न ही कभी इंसान बनो।

पापकर्म अपना न सको तो,

पुण्य के पथ पर मत चलना।।

कांटे बनकर चुभ न सको तो,

बनकर फूल तू मत रहना।।

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तन्हा दिल

कभी जो दिल मे रहते थे हमदर्द बनकर मेरे,

जुदाई उनकी मुझको एक नई सौगात दे गई।

कुछ साथ रहकर भी गैरो का साथ देते रहे,

वो जिंदगी भर साथ देने के लिये,

मेरा साथ छोड़ गई……

 

सुलझी हुई थी जुल्फे, आंखों में खुशनमी थी,

जाने थी क्या बला वो, शायद ही कुछ कमी थी।

चाहेगी वो उसे ही, या चाहता है वो भी उसको।

उन दोनो को ही नही, सबको गलतफहमी थी।।

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कोरोना चक्र – एक प्रेम कथा

सूनी पड़ी है सड़के , मंजर है तनहा तनहा

सुबह का समय , सूरज की किरणे खिड़की के रास्ते सीधे कमरे में प्रवेश कर रही थी। बाहर चिडियो के चहचहाने और बच्चो के खलेने की शोर भी सुनाई दे रहे थे। समर्थ वो समर्थ जल्दी उठ जा कितना दिन चढ़ आया है,अभी तक सो रहा है, चिल्लाते हुए माँ की आवाज कानो में पड़ी तो वो झट से उठ बैठा। क्या माँ इतनी जल्दी जगा दिया, आज तो कालेज भी नहीं जाना है, शिकायत के लहजे में बोला और वाशरूम की तरफ बढ़ गया। सुबह के नौ बज चुके थे , डाइनिंग टेबल पर समर्थ और उसकी माँ के साथ एक छोटा बच्चा भी बैठा थ। अरे सनी सुबह इधर कैसे आ गया, पूछा समर्थ ने। उसकी माँ ने बोला ये सुबह से तीन बार आ चुका है, शायद तमन्ना को कोई किताब चाहिए थी इसलिए भेजा है। तमन्ना का छोटा भाई है सनी।

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गुमनामी से बदनामी भला

.गुमनामी से बदनामी भला, लोग याद तो किया करते है। 

और बदनाम वही होते है, जो नेक काम किया करते है।। 

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दूसरे के बन जाओ लेकिन किसी को अपना न बनाओ

आजकल के जिंदगी में किसी को अपना बनाने की भूल मत करना। अगर आपको लगता है की आप बहुत ही अच्छे व्यक्तित्व वाले व्यक्ति है तो आप दूसरे के बन जाने की कोशिश करना। क्योकि अगर आपने किसी को अपना बनाया तो संभव है आपको उससे धोखा अवश्य मिलेगा, ऐसी स्थिति में आपको दुखी होना पड़ेगा। और अगर आपको किसी ने अपना बनाया या आप किसी के हो गए तो उस व्यक्ति को कभी दुखी होने की स्थिति नहीं आएगी जैसा की आपका व्यक्तित्व है हर किसी को सम्मान और ख़ुशी बाटने का।

श्री अकेलानन्द जी

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