ऐ मुसाफिर आज तू, फिर से अकेला हो गया I
महफिलों की बात क्या, एकांत में ही खो गया II
क्यों बहकता है तू बन्दे, सुनके दो मीठे बोल के ,
छोड़ जाते है तुम्हारे, जीवन में विष घोल के I
जो जगाई आस थी विश्वास की दिल में उसे,
जो मिला हमदर्द बनके, दर्द देकर खो गया I
ऐ मुसाफिर आज तू, फिर से अकेला हो गया II
चेहरे पर मुस्कान तेरे, रहते थे हर पल कभी ,
साथ तेरे रहने से, गम भूल जाते थे सभी I
दिल लगाके तूने फिर क्यों, ऐसी गलती कर डाली ,
उम्र भर आंखे न भीगी, एक पल में रो गया II
ऐ मुसाफिर आज तू, फिर से अकेला हो गया
महफिलों की बात क्या एकांत में भी खो गया II
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