काव्य

कौन हूँ मैं

कौन हूँ मैं

कौन हूँ मैं, मैं कौन हूँ

आन हूँ मैं बान हूँ

खुद की अपनी शान हूँ

जिन्दगी में कौन मेरा

मैं तो खुद की जान हूँ

कौन हूँ मैं , मैं कौन हूँ

सपनो का मैं राही हूँ

मैं निडर सिपाही हूँ

अपनी बलि चढाने को

खुद ही मैं कसाई हूँ

कौन हूँ मैं , मैं कौन हूँ

ना मेरा कोई प्यार है

न किसी से इजहार है

तन्हाई में मैं जीता हूँ

तन्हाई मेरा यार है

कौन हूँ मैं, मैं, कौन हूँ

कोई ख्वाब मेरा तोड़ गया

मझधार में ही छोड़ गया

एहसान किया उसने मुझ पर

मुझको मुझसे जोड़ गया

कौन हूँ मैं, मैं कौन हूँ

अब तो मैं रुकुंगा नहीं

अब कभी झुकूँगा नहीं

वो खुद को चाहे मार दे

पर साथ दे सकूँगा नहीं

कौन हूँ मैं, मैं कौन हूँ

अब किसी की सुनना नहीं

साथी कोई चुनना नहीं

शांत हो चूका हूँ मैं

ख्वाब कोई बुनना नहीं

अब मौन हूँ मैं, हां मैं मौन हूँ

कवि बीरेंद्र गौतम “अकेलानंद “

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दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न

 

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न,

घिरा पड़ा हूँ अंधकार से आकर राह दिखाओ न ।

बचपन में चलते चलते जब घुटने पर गिर जाता था ,

मिट्टी कीचड़ में सन करके मैं गंदा हो जाता था ।।

रोते रोते सूनी आँखे आंसू से भर जाती थी ,

माता भी गुस्से में जब पास न मेरे आती थी ।

झुकी कमर से भी तुम तब ऐसी दौड़ लगाते थे,

राजा बेटा मेरा कहकर फ़ौरन गोद उठाते थे ।।

आज गिरा हालात में फसकर फिर से मुझे उठाओ न ।

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न ।।

राजा रानी, घोड़े हाथी के किस्से  रोज सुनाते थे,

मुझे बिठा कर पीठ पर अपने खुद घोडा बन जाते थे ।

कभी सहारा बनू आपका , मुझको चलना सिखलाया,

सही गलत में फर्क भी करना तुमने मुझको बतलाया ।।

आज जमाना बदल चुका है समझ नहीं कोई आता ,

रहे सामने साथी बनकर पीछे से गला दबा जाता ।

कौन है अपना कौन पराया फिर मुझको समझाओ न,

फिर से गिरा मुसीबत में अब इससे मुझे बचाओ न ।।

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न ।

घिरा पड़ा हूँ अंधकार से आकर राह दिखाओ न ।।

 

कवि बीरेंद्र गौतम ” अकेलानन्द”

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हंसो हमेशा जिन्दगी में 

हंसो हमेशा जिन्दगी में 

 

किसी बात पर हंसो , कभी बिन बात पर हंसो 

हालत नहीं अच्छे तो, अपने हालात पर हंसो 

हंसो हर दिन पर और हर रात पर हंसो 

कभी जुदाई पर हंसो तो, कभी मुलाकात पर हंसो 

अपने हार पर हंसो, फिर उसी जज्बात पर हंसो 

किसी  ने दी नहीं कभी , हर उस सौगात पर हंसो 

ज़माना हंस रहा तुम पर, उस सवालात पर हंसो 

हंसो हरदम की जब तक, तुम्हारे अंदर सांस बाकी है 

और जब अंत हो नजदीक , तो उस कायनात पर हंसो 

सदा उदास रहने से, सब कुछ बिखर जाता है 

और हंसते रहने से जिन्दगी संवर जाता है 

अकेले में भी हंसो और सबके  साथ भी हंसो 

किसी बात पर हंसो तो कभी बिन बात पर हंसो 

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बीरेंद्र गौतम ” अकेलानंद “

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तेरा मुझसे दूर जाने का गम नहीं

तेरा मुझसे दूर जाने का गम नहीं 

 

 

तेरा मुझसे दूर जाने का कोई गम नहीं,

सुकून है इसकी वजह तो हम नहीं ।

जमाने से जाकर मेरी ही कमियाँ गिनाएगी,

फिर भी यकीं है की तेरी दलील में कोई दम नहीं ।।

 

इस हुश्न की तारीफ़ में कुछ न बोलूँगा ,

हर गम को सहते हुए छुपकर रो लूँगा ।

मालूम है उसका प्यार सिर्फ मेरा ही नहीं है ,

पर ये राज जमाने के सामने नहीं खोलूँगा ।।

 

कहने को तो बहुत कुछ है पर आप सुनते कहाँ हो ,

हमारे यादो के भी सपने आप  बुनते कहाँ हो ।

हमने तो पहली नजर में आपको अपना बना लिया,

किसी कशमकस  में आप हमें चुनते कहाँ हो ।।

 

उसकी बेरुखी को कब तक सह पाऊंगा ,

अब जाने किस हद तक चुप रह पाऊंगा ।

पता है वो शामिल है किसी गैर की महफ़िल में ,

प्यार खोने के डर से मैं कुछ न कह पाऊंगा ।।

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बीरेंद्र गौतम “अकेलानंद ”

 

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कोई दिन न बचा ऐसा कि जब तेरी याद न आई हो

कोई दिन न बचा ऐसा कि जब तेरी याद न आई हो

 

कोई दिन न बचा ऐसा

कोई दिन न बचा ऐसा की,

                      जब तेरी याद न आई हो |                    

कोई पल नहीं याद मुझे की,

जब तेरी याद न आई हो ||

यूँ तो साँसे भी छोड़ जाती है ,

एक बार को धोखा देकर |

आंसू भी आँख से गिर जाते ,

किसी अपने को खोकर ||

इक मेरा दिल ही है जिसमे ,

कोई बदलाव न आई हो |

कोई पल नहीं याद मुझे ,

की जब तेरी याद न आयी हो ||

क्या याद तनिक भी है तुझको ,

जो कसमे मिलकर खाई थी |

दोनों से पूरी दुनिया थी ,

बाकी सब लगी परायी थी ||

हैरान नहीं हूँ मैं तुझ पर ,

इक वादा भी अगर निभाई हो |

कोई पल नही याद मुझे की ,

जब तेरी याद न आयी हो ||

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                   बीरेंद्र गौतम “अकेलानंद ” 

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हसरत उसे पाने की पूरी न हो सकी

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इन्तहा इंतजार की ख़त्म होती नहीं

इन्तहा इंतजार की ख़त्म होती नहीं

 

बीरेंद्र गौतम ” अकेलानंद” – बस्ती

तुम आँखों से इशारा न करते अगर,

इन्तहा इंतजार की ख़त्म होती नहीं ।

बात गर दिल से की होती मुझसे कभी,

बेवजह रात भर आँख रोती नहीं ।।

प्यार था प्यार है और रहेगा सदा,

ऐतबार करना सीखा न हमने कभी ।

जो जगह दी है तुझको इस दिल ने मेरे,

यादो के धागों में फिर पिरोती नहीं।।

कोई बिछड़े कभी चाहे दूरी करे,

कितना जायज जुदाई में कोई मरे ।

जिन्दगी इतनी आसान होती अगर,

उम्र भर बोझ यादों के ढोती नहीं।।

इक मुलाकात, फिर बात बढती गयी,

फिर तेरा इश्क सर मेरी चढ़ती गयी ।

न गिरते कभी  प्यार में इस कदर,

बांहों में कसके इक रात सोती  नहीं ।।

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मेरी वाली वेकअप करके मेकअप करती है ,बात बात पर मुझसे वो ब्रेकअप करती है

बात बात पर मुझसे वो ब्रेकअप करती है

कवि एवं अभिनेता – बीरेंद्र गौतम (अकेलानंद )

अकेलानंद

मेरी वाली वेकअप करके मेकअप करती है ।

बात बात पर मुझसे वो ब्रेकअप करती है ।।

किसी से मिलने जाऊ या किसी से मैं बतियाऊं,

सुबह शाम मोबाईल मेरा चेकअप करती है।

नए पुराने दोस्त किसी से कभी न मिलने देती,

गर लडकी के बगल से गुजरूँ पूरी खबर वो लेती ।।

खुद तो कितने लडको से वो हैण्ड शेकअप करती है,

बात बात पर मुझसे वो ब्रेकअप करती है ।।

इस सन्डे को कपड़े मांगे उस सन्डे को सैंडल,

खर्चा इतना करवाती अब होती नही है हैंडल ।

मिलते ही सैलरी सारी वो टेकअप करती है,

बात बात पर मुझसे वो ब्रेकअप करती है ।।

सुबह सुबह बिस्तर से बोले जल्दी दे दो काफी,

गलती चाहे वो करती फिर भी मैं मांगू माफ़ी ।

जाने की धमकी देती, फौरन पैकअप करती है ,

बात बात पर मुझसे वो ब्रेकअप करती है ।।

 

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तू तडपेगी जरूर , मगर धीरे धीरे

तू तडपेगी जरूर , मगर धीरे धीरे

 

तू तडपेगी जरूर , मगर धीरे धीरे ।

मिलने को होगी मजबूर , मगर धीरे धीरे ।

आइना देखकर यूँ, इतना इतराया न कर,

ये उम्र भी ढलेगी जरूर, मगर धीरे धीरे ।।

इन हुस्न की गलियों में ऐसे न खो जाना,

भागदौड़ का है दस्तूर , मगर धीरे धीरे ।

थोड़ी तो रहम कर, ये बेरहमी शोभा नही देती,

टूटता है सबका गुरुर , मगर धीरे धीरे ।।

तेरे संग बीते सभी यादे जिन्दा है अभी,

दिल से मिटेगा, जरुर मगर धीरे धीरे।

अभी कुछ और पल इसी आगोश में जीने दे,

फिर इसे कर देना चकनाचूर, मगर धीरे धीरे ।।

सुना था की मुहब्बत में यकीं मुश्किल से करो ,

मुझ पर भी चढ़ा था सुरूर, मगर धीरे धीरे ।

दुनिया भले ही डूबे इस समंदर में अकेलानंद ,

पार तो मैं निकलूंगा जरुर मगर धीरे धीरे ।।

बीरेंद्र गौतम ” अकेलानंद ” जिला बस्ती

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चले जाओ न आना तुम दोबारा लौटकर – CHALE JAO NA AANA TUM DOBARA LAUTKAR

चले जाओ न आना तुम दोबारा लौटकर – CHALE JAO NA AANA TUM DOBARA LAUTKAR

 

चले जाओ न आना तुम दोबारा लौटकर,

नहीं हम जोड़ते रिश्ते को फिर से तोड़कर  ।।

बिताये दिन तुम्हारे साथ थे हम क्यों भला,

समझ पाए नहीं तुम हो मुसीबत की बला ।

तुम्हे दिन रात हम तो याद करते ही रहे,

मगर पीछे सदा ही काटते थे तुम गला ।।

चैन से जी रहा हूँ मैं तुम्हे अब छोड़कर,

चले जाओ न आना तुम दोबारा लौटकर …

पढाई भी तुम्ही ने तो मेरी बर्बाद कर डाली,

तेरे कारण ही सुनता हूँ पिता जी से अभी गाली ।

जो कुछ भी जेब खर्च मिलते वो सब तुमने किये खाली,

इस झूठे प्यार की खातिर, क्यों मन में थी भरम पाली ।

बहुत खुश है तू अब औरो से रिश्ता जोड़कर,

चले जाओ न आना तुम दोबारा लौटकर … ।।

समझ आता नहीं था जब तू मेरे साथ थी,

बिना पंखो के पंक्षी सी मेरी हालत थी।

इशारो पर तेरे दिन रात यूँ चलता रहा,

सफल तो गयी , मैं हाथ बस मलता रहा ।

मिला क्या तुझको मकसद से मुझको मोड़कर

चले जाओ न आना तुम दोबारा लौटकर ।।

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प्राइवेट कम्पनी किसी का सगा नहीं होता – प्राइवेट नौकरी कब बदले

प्राइवेट कम्पनी किसी का सगा नहीं होता – प्राइवेट नौकरी कब बदले

प्राइवेट कम्पनी कभी भी आपकी नहीं हो सकती

 

आपके दिमाग में चलने वाली बाते – 

हमारा मालिक हमें बहुत मानता है ।

मैं अपने मालिक को धोखा नहीं दे सकता ।

यंहा सीखने को बहुत कुछ मिल रहा है ।

यार इमरजेंसी में पैसा मिल जाता है ।

1-2 घंटे देर से जाता हूँ तो पैसे नहीं काटता ।

पता है मेरे बिना कम्पनी का काम नहीं चलता ।

कम्पनी की चाभी तक मेरे पास है ।

जब मुझे जरुरत थी तो कम्पनी ने मेरा साथ दिया अब मुझे भी साथ देना चाहिए ।

कम्पनी या ऑफिस ज्यादा दूर नहीं है ।

अगर ये सारे विचार आपके भी है तो सावधान आप एक ऐसे दलदल में फंसते जा रहे है जहाँ से निकलना बहुत ही मुश्किल हो जायेगा ।

जब तक आपको समझ में आयेगा की आप दलदल में फंस चुके है तब तक बहुत देर हो जाएगी ।

जरा सोचिये आप अपना घर परिवार छोड़कर इतनी दूर शहर में किस लिए आये है – पैसा कमाने के लिए न , फिर इस मोह के चक्कर में पड़कर अपने लक्ष्य से क्यों भटक रहे है ।

प्यार मोह तो आपके घर परिवार से होना चाहिए था जिन्हें आप पैसो की खातिर छोड़ चुके है तो फिर बहरी लोगो से उम्मीद क्यों ?

प्राइवेट कम्पनी वाले किसी के नहीं होते इन्हें बस अपना उल्लू सीधा करना होता है ।

जब तक आप इन्हें 100 रूपये कमाकर दे रहे है तो बदले में ये आपको 10 रूपये का तनख्वाह दे रहे है । जिस दिन इन्हें लगेगा की आप के काम में कमी हो रही है या आप उतना काम करने में सक्षम नहीं है, उसी दिन ये आपको दूध से मक्खी की तरह निकाल कर बाहर कर देंगे ।

उस समय आप सोचेंगे की आपका मालिक आपको कितना मानता है ।  अरे भाई किस अँधेरे में जी रहे है अभी भी समय है और समय रहते नौकरी बदल लेनी चाहिए ।

किस समय तक नौकरी बदलते रहे

बहुत से लोगो को प्रश्न होता है की अभी तो हम काम पर लगे है और यंहा तो बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है तो हमें नौकरी बदलनी चाहिए या नहीं-

उसके लिए निम्न बातो का ध्यान रखे –

प्राइवेट कम्पनी किसी का सगा नहीं होता है

जिस कम्पनी में काम कर रहे है उस कम्पनी का ग्रोथ रेट क्या है मतलब कम्पनी कितनी पूरानी है और किस लेवल तक पहुची है ।

उस कम्पनी में सबसे पुराने कर्मचारी की तनख्वाह क्या है और सबसे बड़ी बात उस कम्पनी में उसकी इज्जत कितनी है ।

जिस काम को आप सीखने की कोशिस कर रहे है उस काम में और कितने लोग है , आपका कम्पटीशन कितने लोगो से है , और वो कितने दिन से काम कर रहे है ।

क्या उस काम से और उस कम्पनी से मिलने वाले पैसे से आपकी जरूरते पूरी हो रही है या सिर्फ सीखने के चक्कर में अपने आप से समझौता करके जीवन यापन कर रहे है ।

तो भाइयो इन बातो को देखते हुए अगर आपको लगता है की आप सिर्फ सीखने के चक्कर में अपना ज्यादा समय बर्बाद कर रहे है, और सीखने के बाद भी यंहा पर ज्यादा पैसे मिलने वाले नहीं है तो देर किस बात की आज ही कम्पनी छोड़ दे ।

कभी भी 4-5 कमर्चारी और बिना रजिस्टर्ड वाली कम्पनी में काम न करे क्योकि ऐसे कम्पनी के कोई भी नियम क़ानून नहीं होते ये कभी भी आपको लात मर कर बाहर निकल सकते है ।

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हाँ हो सकता है की ऐसे कम्पनियों में आपका सम्पर्क सीधे सीधे मालिक से होता है और वो आपके साथ ऐसे पेश आता है । मानो आप के भरोसे ही ये कम्पनी चल रही है और अगर कभी आपने जाने अनजाने में नौकरी बदलने की बात की तो आपके साथ इमोशनल ब्लैकमेल भी करता है तो तुरंत सावधान हो जाइये ऐसे कम्पनी में तो बिलकुल न रूके । ये आपकी भविष्य को बर्बाद कर सकते है  और जब तक ये बात आपके समझ में आयेगा तब तक बहुत देर हो जाएगी ।

सुझाव – अगर आप नए नए शहर में आये है तो सबसे पहले आपको जरुरत होगी अपने खर्चे चलाने की ऎसी स्थिति में आपको जो भी काम मिले सहर्ष स्वीकार करे और शुरुआत करे ।

2-3 महीने बाद जब आपकी आर्थिक स्थिति ठीक हो जाये या यूँ कहे की 10-15 दिन भी आप बैठकर खाने के लायक हो जाये तो फिर अपने काबिलियत के अनुसार नौकरी ढूंढें ।

आपकी इच्छा अनुसार नौकरी मिलने पर आप उस कम्पनी में अपना 100 प्रतिशत दीजिये जिससे आपको काम करने के तरीके , नियम कानून , लोगो के ब्यवहार आदि सब कुछ अच्छे से समझ में आ जाये ।

अब अपने  तनख्वाह और काम की तुलना कीजिये की आपके काम के हिसाब से आपको पैसे मिल रहे है या नहीं अगर ऐसा नहीं है । तो देखिये की दूसरी कम्पनी में उसी काम के इतने पैसे मिल रहे है आगर ये अनुपात ज्यादा का है तो फिर देर किस बात की तुरन्त नौकरी बदले दीजिये ।

कम्पनी में कभी किसी के साथ बय्क्तिगत मत होइए ये सदा आपका नुकसान करवाती है अपने काम से काम रखिये , ऐसा भी नहीं की आप किसी से बातचीत मत कीजिये , कीजिये लेकिन एक दायरे में रहकर अपने परिवार या किसी पुरानी घटना का जिक्र किसी से मत कीजिये ।

अगर आपको लोगो को इस विषय में और जानकारी चाहिए तो हमें व्हात्सप्प नंबर पर सम्पर्क कर सकते है या कमेन्ट बॉक्स में लिख सकते है तो उस विषय पर लेख जरुर लिखा जायेगा ।

 

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भारत माता की पुकार – बंद करो बेटी पर अत्याचार – हिंदी कविता आन्दोलन

भारत माता  की पुकार – बंद करो बेटी पर अत्याचार – हिंदी कविता

बलात्कारी को फांसी दो 

हम पर अत्याचार बंद करो

आज के इस घोर कलयुग में बेटी पर अत्चाचार को देखकर भारत माँ का सीना छलनी होता जा रहा है ।

इसी मर्म को देखते हुए आखिर में ये पंक्तिया लिखनी पड़ी जिसे भारत के हर नागरिक तक पहुंचाने की जरुरत है,   और सरकार को भी जागने की ख़ास जरुरत है:

 

 

अब देख के हालत  नारी की ये भारत माता रोती है,

गर बेटी की इज्जत लुट जाये , भला कहाँ वो सोती है ।

उस माँ का दर्द भला किसको,  कब अन्दर तक झकझोरेगा,

उस माँ की ममता को मरने से कौन भला अब रोकेगा ।।

बेटा हो या  बेटी दोनों,  गोद में उसकी खेले है,

बोझ बराबर दोनों के,  इस भारत माँ ने झेले है ।

जब उसने दोनों के साथ नही जरा सा भी पक्षपात किया,

फिर किस कारण इक बेटे ने उसकी बेटी से घात किया ।।

है छलनी सीना आज किया जिसका है कोई इलाज नही,

ऐसा कुकर्म करते हुए क्यों आई उसको लाज नहीं ।

हे भारत के रक्षक बनने वाले, क्या तेरी भी हौंसला टूट गया,

इक बेटी को जिसने रौदा, तेरे रहते  क्यों  छूट  गया ।।

एक बात पूछनी तुझसे है क्या लगता तुझको पाप नहीं,

इसलिए कही तू चुप बैठा , की लड़की का तू बाप नहीं ।

गर बाकी जरा भी शर्म तुझे , तो तुझको  मेरी कसम यही,

ला खीच उसे अब फांसी दे, और कर दे उसको भस्म वहीँ ।।

गर भारत माँ अब रोएगी  , फिर ऐसा प्रलय आएगा,

मानव जाति का नामो निशाँ  इस दुनिया से मिट जायेगा ।

इतने पर सरकार की आँखे जो न अब खुल पाएंगी ,

अकेलानंद का दावा है वो मिटटी में मिल जाएगी ।।

 

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तिरंगा हमारी शान – तिरंगे का करे सम्मान

तिरंगा हमारी शान – तिरंगे का  करे सम्मान

 

तिरंगे का सम्मान करे

हमारे देश में सभी राष्ट्रीय त्योहारों पर चाहे वो गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रता दिवस , हम सभी देशवासी बड़ी धूमधाम से मनाते  है और करोडो की मात्रा में तिरंगा फहराया जाता है ।

परन्तु  जरा सोचिये उसके अगले दिन उन तिरंगो  का क्या होता है ? क्या उसे उचित जगह हम रखते है या यूँ ही इधर उधर फेंक देते है ।

इसी सन्दर्भ में ये रचना है । आजादी का दिन है और तिरंगा फहराने की तैयारी चल रही  है जिस खम्भे से उसे बांधकर फहराया जाना है , वो खम्भा उस तिरंगे से क्या कहता है इसे पढ़े :

 

ऐ तिरंगे आज बहुत नाज तो होगा तुझे,
आसमान की बुलंदियों में तुझे लहराया जायेगा।
जो कभी झुकते नहीं थे मंदिर या दरगाहो में
उनके सिर भी तू अपने कदमों में झुका पायेगा।

पर क्या हकीकत है ये तझसे बेहतर कौन जनता है
इस देश का ही एक तबका तुझे अपना नहीं मानता है।

आज वो जो बात करते त्याग और बलिदान की,
वो कल किसी कोठे या मदिरालय में खड़ा होगा,
आज जो इतनी इज़्ज़त बक्शी जा रही तुझे,
अफ़सोस कल किसी गली के कूड़े में पड़ा होगा ।

देश भक्ति का ये नशा बस है दिखावा आज का
सच नहीं सब झूठ है, छलावा है बस ताज का।

दिन अस्त होते ही भुला देंगे तुझे ये आज ही,
फिर से तेरी याद अगले सत्र सबको आएगा ।
फिर से गूज उठेगी जयकारे तेरे नाम से
और फिर एकबार तू आकाश में लहराएगा ।।

आप सब से निवेदन है की तिरंगे को सम्मान के साथ उचित स्थान पर रखे ।

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कवि बीरेंद्र गौतम – अकेलानन्द

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