पिता कविता

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न

 

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न,

घिरा पड़ा हूँ अंधकार से आकर राह दिखाओ न ।

बचपन में चलते चलते जब घुटने पर गिर जाता था ,

मिट्टी कीचड़ में सन करके मैं गंदा हो जाता था ।।

रोते रोते सूनी आँखे आंसू से भर जाती थी ,

माता भी गुस्से में जब पास न मेरे आती थी ।

झुकी कमर से भी तुम तब ऐसी दौड़ लगाते थे,

राजा बेटा मेरा कहकर फ़ौरन गोद उठाते थे ।।

आज गिरा हालात में फसकर फिर से मुझे उठाओ न ।

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न ।।

राजा रानी, घोड़े हाथी के किस्से  रोज सुनाते थे,

मुझे बिठा कर पीठ पर अपने खुद घोडा बन जाते थे ।

कभी सहारा बनू आपका , मुझको चलना सिखलाया,

सही गलत में फर्क भी करना तुमने मुझको बतलाया ।।

आज जमाना बदल चुका है समझ नहीं कोई आता ,

रहे सामने साथी बनकर पीछे से गला दबा जाता ।

कौन है अपना कौन पराया फिर मुझको समझाओ न,

फिर से गिरा मुसीबत में अब इससे मुझे बचाओ न ।।

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न ।

घिरा पड़ा हूँ अंधकार से आकर राह दिखाओ न ।।

 

कवि बीरेंद्र गौतम ” अकेलानन्द”

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पिता ही परम-पिता

पिता ही परम-पिता

तू मंदिर मंदिर भटक रहा , जिस प्रभु का करने को नमन I
इक भगवान है भूखा बैठा , जिसने दी है तुझको जीवन II
चढ़ा रहा फल फूल  मिठाई, धूप  नैवेद्य  करता अर्पण I
एक बूंद प्यास को तरस रहा, तेरे खातिर सब किया समर्पण II
अपने सपने पाने की खातिर, घुटने टेक करता विनती I
उसने तुझ पर कुर्बान किये, निज सपनों की न कोई गिनती II
इस पिता की आज्ञा से रामचंद्र, नर से नारायण तुल्य हुए I
पितृ भक्ति से न जाने कितने, सादे जीवन बहुमूल्य हुए II
जिस प्यार भाव से ऐ  बंदे, उस प्रभु का तू करता गुणगान I
बस एक बार दिल से पुकार, उस पिता को भी देकर सम्मान II
जो अब तक तुझको नही मिला, सच मान वो सब मिल जायेगा I
जो पूरा न कर सके  देवी देवता,  इक आशीर्वाद कर जायेगा II

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