तू मंदिर मंदिर भटक रहा , जिस प्रभु का करने को नमन I इक भगवान है भूखा बैठा , जिसने दी है तुझको जीवन II चढ़ा रहा फल फूल मिठाई, धूप नैवेद्य करता अर्पण I एक बूंद प्यास को तरस रहा, तेरे खातिर सब किया समर्पण II अपने सपने पाने की खातिर, घुटने टेक करता विनती I उसने तुझ पर कुर्बान किये, निज सपनों की न कोई गिनती II इस पिता की आज्ञा से रामचंद्र, नर से नारायण तुल्य हुए I पितृ भक्ति से न जाने कितने, सादे जीवन बहुमूल्य हुए II जिस प्यार भाव से ऐ बंदे, उस प्रभु का तू करता गुणगान I बस एक बार दिल से पुकार, उस पिता को भी देकर सम्मान II जो अब तक तुझको नही मिला, सच मान वो सब मिल जायेगा I जो पूरा न कर सके देवी देवता, इक आशीर्वाद कर जायेगा II