कवि सम्मलेन

हंसो हमेशा जिन्दगी में 

हंसो हमेशा जिन्दगी में 

 

किसी बात पर हंसो , कभी बिन बात पर हंसो 

हालत नहीं अच्छे तो, अपने हालात पर हंसो 

हंसो हर दिन पर और हर रात पर हंसो 

कभी जुदाई पर हंसो तो, कभी मुलाकात पर हंसो 

अपने हार पर हंसो, फिर उसी जज्बात पर हंसो 

किसी  ने दी नहीं कभी , हर उस सौगात पर हंसो 

ज़माना हंस रहा तुम पर, उस सवालात पर हंसो 

हंसो हरदम की जब तक, तुम्हारे अंदर सांस बाकी है 

और जब अंत हो नजदीक , तो उस कायनात पर हंसो 

सदा उदास रहने से, सब कुछ बिखर जाता है 

और हंसते रहने से जीवन  संवर जाता है 

अकेले में भी हंसो और सबके  साथ भी हंसो 

किसी बात पर हंसो तो कभी बिन बात पर हंसो 

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बीरेंद्र गौतम ” अकेलानंद “

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पति पत्नी हास्य कविता – पत्नी का आतंक

पति -पत्नी हास्य कविता – पत्नी का आतंक

 

कवि- बीरेंद्र गौतम “अकेलानंद”

तर्ज– आओ बच्चों तुम्हे दिखाएँ  झांकी हिंदुस्तान की

 

आओ किस्सा तुम्हे सुनाये , पतियों के अपमान की

बचना चाहो तो बात सुनो ,  अकेलानंद महान की

“घरवाली की जय बोलो घर वाली की जय ”

आज सुबह ही पत्नी  मेरी बहुत हुई थी गुस्सा,

उसी भाव में उसने मुझको एक लगाया घूसा । घर वाली की जय बोलो -2

घूसा खाकर मै तो मानो खुद में सिमट गया था,

पास में बैठा बेटा मेरा उससे लिपट गया था ।

बेटा  बोला सुन मेरी माँ तूने पापा को क्यों  मारा,

पहले मेरे आंसू पोंछे फिर मम्मी को ललकारा ।।घर वाली की जय बोलो -2

पहले पत्नी  मुस्काई फिर हाथ उठाया चिमटा,

देख नज़ारा बेटा मेरा गोदी में आ सिमटा ।

अभी तलक जो कुछ थी ठंडी, अब बन गयी थी चंडी,

हम दोनों ऐसे चिल्लाये जैसे हो सब्जी मंडी ।। घर वाली की जय बोलो -2

हाथ जोड़कर मैंने पूंछा मेरी क्या गलती है,

केवल तेरा राज नहीं, कुछ मेरी भी चलती है ।

बस इतना सुनना था की वो नागिन सी फुफकारी,

उस चिमटे से कहाँ कहाँ जाने फिर हमको मारी ।। घर वाली की जय बोलो -2

अब तक मैं था समझ गया ये केवल उसका घर है,

वो इस घर की मालकिन और हम तो बस नौकर है ।

आप सभी से विनती मेरी पत्नी का  सम्मान करो ,

जो न पिटना चाहो तो पूरे हर अरमान करो ।।

‘घर वाली की जय बोलो घर वाली की जय ”

 

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