कविता

सारे नेता बड़े दगाबाज रे

सारे नेता बड़े दगाबाज रे

दगाबाज रे , हाय दगाबाज रे

सारे नेता बड़े दगाबाज रे

नेता नेता हाय नेता ….. नेता नेता

छोटे नेता.. बड़े नेता .. बैठे नेता .. खड़े नेता

सारे नेता बड़े दगाबाज रे

कल लिए वोट भूल गए आज रे

दगाबाज रे सारे नेता बड़े दगाबाज रे

आते चुनाव में गिर जाते पाँव में

देखे न धरम जतिया ……

कहते जिताओगे तो साथ खड़े पाओगे

दिन हो या हो रतिया …….

बस एक बार हम पर एहसान कई दे

हमरा मुहर पर इस बार ध्यान दई दे

फिर तो न करिहे इ तोहसे बात रे

दगाबाज रे .. सारे नेता बड़े दगाबाज रे

वादा किये है जो पूरा न करते है

जाने है सब बतिया ….

करते घोटाले है दिन इनके काले है

मारी गई है मतिया ….

इक से इक बढकर इनके है पाप रे

फिर भी छबि इनकी रहती है साफ़ रे

हाय दगाबाज रे .. दगाबाज रे ..

सारे नेता बड़े दगाबाज रे

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कौन हूँ मैं

कौन हूँ मैं

कौन हूँ मैं, मैं कौन हूँ

आन हूँ मैं बान हूँ

खुद की अपनी शान हूँ

जिन्दगी में कौन मेरा

मैं तो खुद की जान हूँ

कौन हूँ मैं , मैं कौन हूँ

सपनो का मैं राही हूँ

मैं निडर सिपाही हूँ

अपनी बलि चढाने को

खुद ही मैं कसाई हूँ

कौन हूँ मैं , मैं कौन हूँ

ना मेरा कोई प्यार है

न किसी से इजहार है

तन्हाई में मैं जीता हूँ

तन्हाई मेरा यार है

कौन हूँ मैं, मैं, कौन हूँ

कोई ख्वाब मेरा तोड़ गया

मझधार में ही छोड़ गया

एहसान किया उसने मुझ पर

मुझको मुझसे जोड़ गया

कौन हूँ मैं, मैं कौन हूँ

अब तो मैं रुकुंगा नहीं

अब कभी झुकूँगा नहीं

वो खुद को चाहे मार दे

पर साथ दे सकूँगा नहीं

कौन हूँ मैं, मैं कौन हूँ

अब किसी की सुनना नहीं

साथी कोई चुनना नहीं

शांत हो चूका हूँ मैं

ख्वाब कोई बुनना नहीं

अब मौन हूँ मैं, हां मैं मौन हूँ

कवि बीरेंद्र गौतम “अकेलानंद “

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