दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न

Spread the love

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न

 

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न,

घिरा पड़ा हूँ अंधकार से आकर राह दिखाओ न ।

बचपन में चलते चलते जब घुटने पर गिर जाता था ,

मिट्टी कीचड़ में सन करके मैं गंदा हो जाता था ।।

रोते रोते सूनी आँखे आंसू से भर जाती थी ,

माता भी गुस्से में जब पास न मेरे आती थी ।

झुकी कमर से भी तुम तब ऐसी दौड़ लगाते थे,

राजा बेटा मेरा कहकर फ़ौरन गोद उठाते थे ।।

आज गिरा हालात में फसकर फिर से मुझे उठाओ न ।

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न ।।

राजा रानी, घोड़े हाथी के किस्से  रोज सुनाते थे,

मुझे बिठा कर पीठ पर अपने खुद घोडा बन जाते थे ।

कभी सहारा बनू आपका , मुझको चलना सिखलाया,

सही गलत में फर्क भी करना तुमने मुझको बतलाया ।।

आज जमाना बदल चुका है समझ नहीं कोई आता ,

रहे सामने साथी बनकर पीछे से गला दबा जाता ।

कौन है अपना कौन पराया फिर मुझको समझाओ न,

फिर से गिरा मुसीबत में अब इससे मुझे बचाओ न ।।

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न ।

घिरा पड़ा हूँ अंधकार से आकर राह दिखाओ न ।।

 

कवि बीरेंद्र गौतम ” अकेलानन्द”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *