कहानियाँ

चेहरा – ( दाग चहरे पर नहीं दिल में है) 

चेहरा – ( दाग चहरे पर नहीं दिल में है)

(पात्र – सिद्धांत- २५ साल, मुस्कान- २२ साल, बिक्रांत- २५ साल, सार्थक- ३५ साल )

दृश्य- १

एक लड़का और लड़की स्कूटी से जा रहे है, दोनों बहुत खुश लग रहे है आपस में बाते करते हुए हंस रहे है I

इतने में सामने से एक लड़का इशारा करता है,  लड़की पलट कर देखती है जो उसका कोई पुराना दोस्त होता है I

लड़की स्कूटी चला रहे लड़के से बोलती है I

लड़की- अरे सिद्धांत  उधर देखो मेरा पुराना दोस्त है, स्कूटी घुमाओ जल्दी I

और इसी हडबडाहट में स्कूटी  टकरा जाती है ,  लडकी तो बच  जाती है पर लड़के के मुंह  पर चोट  लग जाती है I

बगल से एक और युवक जा रहा होता है थोड़े से फटेहाल में है , एक्सीडेंट देखकर रुक जाता है I

युवक – अरे जल्दी से इन्हें हास्पिटल ले चलो , खून ज्यादा बह रहा है I

फिर सभी उसे हॉस्पिटल लेकर चले जाते है I

दृश्य - २

सिद्धांत,  जिस लडके  को चोट लगी थी बिस्तर पर लेटा हुआ है उसके चेहरे पर ज्यादा चोट लगने के कारण चेहरे पर दाग आ गया है I

इतने में लड़की उसी पुराने दोस्त के साथ उससे मिलने आती है उसके चेहरे पर दाग देखकर थोडा चौंकती है लेकिन खुद को सम्भाल  लेती है

मुस्कान – ये दाग अभी तक ……  डाक्टर ने क्या बोला … ये ठीक तो हो जायेगा न ?

सिद्धांत – शायद नहीं होगा , डाक्टर साहब कह रहे थे की दाग ऐसा ही रहेगा अगर ठीक करना है तो प्लास्टिक सर्जरी करवानी पड़ेगी I और तुम तो जानती ही हो की इतनी महंगी सर्जरी मैं करा नहीं सकता I

मुस्कान – मन ही मन तेरी औकात ही इतनी कहाँ I

सिद्धांत – तुम कुछ कह रही हो शायद I

मुस्कान – (हडबडाते हुए) नहीं कुछ नहीं I तुम जल्दी ठीक हो जाओगे I

बिक्रांत (लड़की का दूसरा दोस्त)  – अब चलते है हमें देर हो रही हैI तुम्हारे दुकान का कागज भी सही करवाना है I

 सिद्धांत –क्या  बात बात है मुस्कान, कुछ दिक्कत है क्या ?

मुस्कान- नहीं कुछ नहीं तुम आराम करो I बिक्रांत है न ! सब संभाल लेगा I

मुस्कान , बिक्रांत का हाथ पकड़कर वंहा से चली जाती है I

 

सिद्धांत उसे जाते हुए देखता है , फिर बगल में रखी किताब पढने लगता है I

दृश्य - ३

सिद्धांत कुर्सी पर बैठकर किताब पढ़ रहा होता है इतने में फोन की घंटी बजती है I

सिद्धांत- हैलो (उधर से एक लड़की की आवाज आती है )- अरे मुस्कान तुम …. कैसी हो I

मुस्कान और उसका दोस्त बिक्रांत दोनों बाइक पर होते है I

मुस्कान- सिद्धांत मैं कुछ कहना चाहती थी, वो मै ……मै …… तुम्हारे साथ ..

सिद्धांत- बोलो क्या बात  है , रुक क्यों गयी ?

(उधर बिक्रांत बोलता है उससे पूछ उसका चेहरा कैसा है अब)

मुस्कान- तुम्हारा फेश कैसा है अब, दाग सही तो नहीं हुए होंगे ?

सिद्धांत- नहीं, मैंने तो बताया तो था की सर्जरी से सही हो जायेगा I

मुस्कान- हां मालुम है और वो कभी नहीं होगा, तो मै……. मैं  नहीं चाहती की कल को अगर मैं तुम्हे किसी से मिलवाऊ तो लोग पता नही क्या कहेंगे

सिद्धांत- क्या – क्या? मैं  समझा नहीं ?

बिक्रांत ,( मुस्कान के हाथ से मोबाइल छीन लेता है)- सुन भाई अब मुस्कान तेरे साथ नहीं रह सकती , कुछ दिनों बाद हम शादी कर रहे है I अब तू उसे हमेशा के लिए भूल जाना I और फ़ोन काट देता है I

सिद्धांत थोडा मायूस हो जाता है लेकिन फिर किताब पढने लगता है I 

दृश्य- ४

दफ्तर का दृश्य है I एक क्लर्क बाहर बैठा कुछ काम कर रहा है I

इतने में बिक्रांत और मुस्कान उस आफिस के सामने आते है I उनके हाथ में कुछ पेपर है I दोनों बहुत परेशान लग रहे है I

मुस्कान- हमें साहब से मिलना है बहुत अर्जेंट है I

क्लर्क  – आपके पास साहब का अपॉइंटमेंट है क्या ?

बिक्रांत- नहीं हमारे पास नहीं है I

क्लर्क – तो फिर साहब नहीं मिल सकते I एक काम करो अपना पेपर छोड़ जाओ और नाम और नम्बर भी, मैं आपको एक दो दिन में बुला लुंगा I

मुस्कान- नहीं हमें बहुत जरूरी है , अगर साहब ने हस्ताक्षर नहीं किये तो हम सड़क पर आ जायेंगे I हमारा दुकान नीलाम हो जायेगा I

दोनों हाथ जोड़कर गिडगिडाने लगते है I

क्लर्क  – अच्छा रुको मैं देखता हूँ I

(अन्दर बैठा व्यक्ति इनकी बाते सुन लेता है और आवाज देता है , सार्थक उन दोनों को अन्दर ले आओ I

 दोनों अंदर जाते है और चौक जाते है I सामने कुर्सी पर सिद्धांत बैठा होता है I

मुस्कान- तुम और यंहा , इस कुर्सी पर …

सार्थक (क्लर्क ) – मैडम तुम नहीं आप कहो , यही है यहाँ के नए आफिसर I

सिद्धांत- जी हाँ मैं, तुम्हे तो पता ही होगा की मैं UPSC की तयारी कर रहा था I पहले तो मेरे पास समय बहुत कम होता था पढने के लिए , लेकिन  जब तुम मुझे छोड़कर चली गयी तो मैं  पूरी तरह से फ्री हो गया I मैंने पूरा समय पढाई में लगाया और आज इस ओहदे पर पंहुचा गया I

मुस्कान- सॉरी सिद्धांत… मुझे माफ़ कर दो I मैंने तुम्हारे साथ गलत व्यव्हार किया I

और दूसरी तरफ मुस्कराते हुए क्लर्क  को देखकर , तुम तो वही हो न जो उस दिन एक्सीडेंट में हमारी मदद किया था I

सार्थक – हाँ मैं वही हूँ, एक दिन किसी काम से साहब हमारे गावं में आये थे ,मैं बेरोजगार था, साहब ने मेरा हालचाल पूछा और यहाँ  नौकरी दे  दिया I

बिक्रांत – परन्तु आपके चेहरे पर दाग था न ?

सिद्धांत- मैंने सर्जरी करवा लिए, सोचा एक तो चली गयी कही ऐसा न हो की दूसरी मिले ही न और हंसने लगता हैI

इतने में दोनों वापस जाने लगते है , उन्हें वापस जाता देखकर सिद्धांत उन्हें रोकता है I

सिद्धांत- रुको तुम्हारा कोई काम था न, लाओ मैं साइन कर देता हूँ I

मुस्कान उसे पेपर देती है , सिद्धांत पेपर चेक करता है, और वापिस कर देता है I

सिद्धांत- सॉरी मैडम मैं इस पर साइन नहीं कर सकता I ये अवैध है,  हाँ अगर कुछ और सहायता चाहिए तो सार्थक को बोल देना I

दोनों मायूस होकर चले जाते है I

 सिद्धांत कुर्सी पर बैठकर काम करने लगता है और सार्थक बाहर अपनी जगह पर ……………..       


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पागल

 

पात्र – पागल, पति – पत्नी और बच्चा

२-४ बच्चे ,दुकानदार और भीड़ 

दृश्य -१

एक व्यक्ति फटे पुराने कपडे पहने हुए, बिखरे हुए बाल, शरीर पर कीचड लगा हुआ, मनो कितने दिनों से नहाया नहीं हुआ था, सड़क पर चले जा रहा है।  किनारे से छोटे छोटे बच्चे पागल पागल कहते हुए , कोई उस पर कंकड़ मार रहा है तो कोई दूर से ही चिढ़ा रहा है।

और वो व्यक्ति अपने ही धुन में चले जा रहा है बिना किसी का जवाब दिए हुए

एक दुकान के पास  एक महिला अपने छोटे बच्चे के साथ खड़ी है, बच्चा हाथ में एक ब्रेड का टुकड़ा लेकर खा रहा है।

पागल – इशारे से ही उस औरत से कुछ खाने के लिए बोलता है /

औरत – चल दूर हट यहाँ से , पागल कहीं का। 

पागल- (बच्चे के तरफ देखते हुए- अपने पेट पर हाथ फिरता हुआ ) मुझे भूख लगी है , कुछ खिला दो

(छोटा बच्चा उस आदमी की तरफ देखते हुए ब्रेड का टुकड़ा बढ़ा रहा होता है की वो औरत बच्चे को खींच कर दूसरी तरफ ले जाती है, और वो ब्रेड का टुकड़ा वही जमीन पर गिर जाता है )

औरत मन में गालिया बकते हुए वहां से चली जाती है , दुकान दार उस पागल की तरफ डंडा लेकर दौड़ता है, चल  भाग यंहा से।

पागल उस गिरे हुए ब्रेड के टुकड़े को उठा कर खाने लगता है और धीरे धीरे वंहा से चला जाता है।

दृश्य –

अगले दिन वही पागल व्यक्ति एक कॉलोनी की तरफ पहुँच जाता है तो देखता है की वही बच्चा बाहर हाथ में बिस्कुट लेकर खा रहा होता है और बगल में उसके पापा बैठे हुए है।

बच्चे को देखकर पागल इशारा करता है , बच्चा धीरे धीरे उसके पास जाने लगता है।

बच्चे का पिता उसे जाते हुए देखता है तो रोकता है

पागल- साहब कुछ खाने को दे दो, बहुत भूख लगी है।

पिता- ठीक है दूर रहो , मै कुछ मंगाता हूँ।  (और घर के दरवाजे पर जाकर आवाज लगाता है )          

सुनती हो , जरा कुछ खाने के लिए ले आना, बेचारा भूखा है।

इतने में वो बच्चा बिस्कुट का पैकेट उसे दे देता है।

पिता अपने बच्चे के इस हरकत को देखकर मुस्करा देता है

इतने में एक औरत हाथ में रोटी लेकर बाहर आती है और उस पागल को देखकर भड़क उठती है।

औरत – तो इस पागल के लिए आप रोटियां मंगा रहे थे।

पिता- तो क्या हुआ आखिर वो भी तो इंसान ही है, दो रोटी खिला दोगी तो तुम्हारा कुछ बिगड़ नहीं जायेगा।

औरत- हां हां क्यों नहीं सरे पागलो को यही बुला लो, धर्मशाला खोल रखा है न, और उस पागल को वंहा से भगा देती है ,

पागल बिस्कुट का टुकड़ा खाते हुए उस बच्चे को देखता है और वंहा से चला जाता है।

दृश्य –

शाम का समय है , पति , पत्नी और बच्चा गाड़ी में बैठकर बाजार जाते है।

बाजार पहुँच कर पति,  पत्नी और बच्चे को गाड़ी से उतार देता  है।

पति – यहीं पर रुको मै गाड़ी को पार्किंग में लगाकर आता हूँ।

औरत अपने बच्चे के साथ उतर जाती है , पति गाड़ी लेकर चला जाता है।

दोनों माँ और बच्चे सड़क के किनारे ही खड़े है , इतने में औरत के फ़ोन की घंटी बजती है और वो फोन पर किसी से बात करने लगती है ,

बातो बातो में वो बच्चे का हाथ छोड़ देती है और इधर उधर टहलते हुए बात करने लगती है।

इतने में बच्चा सड़क पर पहुंच जाता है , अचानक एक जोर से टकराने की आवाज आती है , तो उस औरत का ध्यान उधर सड़क की तरफ जाता है , लोगो की भीड़ जमा हो जाती है ,

उधर तब तक पति भी वहां पहुंच जाता है और पूछता है अपना बच्चा कहाँ है।

दोनों घबरा कर उस भीड़ के पास पहुंच जाते है तो देखते है की उनका बेटा घबराया हुआ रो रहा है , और बगल में एक व्यक्ति की लाश पड़ी हुई है , जब उसके शरीर को सीधा करते है तो ये वही पागल होता है।

फ़्लैश बैक

(जब बच्चा सड़क पर जा रहा होता है तो दूर वही पागल खड़ा होता है, गाड़ी को उसके पास जाते देखकर उस बच्चे को बचाने की कोशिश करता है लेकिन खुद ही उसकी चपेट में आ जाता है। )

अंतिम दृस्य

औरत को अपने किये हुए बर्ताव पर बहुत पछतावा होता है, और रोने लगती है ,

औरत- मैंने बहुत बुरा बर्ताव किया इसके साथ और आज इसने मेरे बच्चे की जान बचाने के लिए अपनी जान गावं दी।

पति- बिलकुल सही कहा , हमें किसी भी व्यक्ति के साथ दुर्व्यहार नहीं करना चाहिए आखिर वो भी तो इंसान ही होते है, पता नहीं अपनी किस गलती और हालात के कारण उनकी ऐसी स्थिति हो जाती है , हमें चाहिए की ऐसे लोगो के साथ सहानुभूति रखे और कभी किसी को कष्ट न पहुचांए। 

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शिक्षा हर बच्चे का हक़ है

दृश्य -१

एक छोटा सा घर है,  माँ चूल्हे पर खाना बना रही है, एक छोटा सा बच्चा जमीन पर बैठकर अपना होमवर्क पूरा कर रहा है

तभी एक युवक प्रवेश करता है

पिता- (शराब के नशे में झूमते हुए)- ऐ सोनू जल्दी से पानी लेकर दे

सोनू- पापा मै होमवर्क पूरा करके देता हूँ अभी

पिता- बड़ा आया कलक्टर बनने, जल्दी ला मेरा गला सूख रहा है

पत्नी- क्यों चिल्ला रहे हो उसे अपना होमवर्क पूरा करने दो, उसका इम्तिहान आने वाला है

पति- पढ़ लिख कर क्या कर लेगा, करनी तो मजदूरी ही है, आज तक पूरे खान दान में कोई भी पढ़लिखकर एक चपरासी तक तो नहीं बना I

रसोई से पत्नी पानी का गिलास लेकर आती है, पानी का गिलास थमाते हुए

पत्नी (सुनीता )- लीजिये पानी, बच्चे पर क्यों गुस्सा कर रहे है उसे पढ़ने दीजिये, , प्रिंसिपल कह रहे थे की आपका सोनू पढ़ने में बहुत तेज है उसे खूब पढ़ाना

पति- (पानी का गिलास दूर फेकते हुए) इसका फीस कौन तेरा बाप भरेगा, मेरे पास इतने फालतू पैसे नही है

और पैर पटकते हुए बाहर निकल जाता है

सोनू सहम जाता है और सिसकने लगता है

माँ अपने बेटे को गले लगते हुए – बेटा तू रोता काहे को है , मै तुझे पढ़ाऊंगी, जब तक तू पढ़ना चाहे।

सोनू- मगर मम्मी आप फीस के पैसे कहाँ से दोगी। 

सुनीता-   तू चिंता मत कर बेटा , मै मजदूरी करुंगी , घरो में चौका बर्तन करुँगी, लेकिन तुझे जरूर पढ़ाऊंगी,

तू सिर्फ अपने पढाई पर ध्यान देना।

दृश्य -२

सुनीता अलमारी में कपडे तह करके रख रही होती है और उसे ततः में कुछ पैसे रखती है बच्चे के फीस के लिए

इतने में पीछे से पति आ जाता है और वो पैसे को देख लेता है

पति- मुझे कुछ पैसे चाहिए बहुत जरूरी काम  है

सुनीता- क्या जरूरी काम आ गया अब? ये पैसे सोनू के फीस के लिए है

पति -पैसे छीनते हुए , बड़ी आई फीस जमा करने वाली क्या करेगा पढ़कर ।  सुबह से जी मचल रहा है, बड़े जोर की तलब लगी है

सुनीता- हाँ हाँ जी तो घबराएगा ही , सुबह से पीने को नहीं मिली न, दो दिन से काम पर भी नहीं जा रहे हो, इतना खर्चा है कैसे गुजारा होगा।

पति- (तंज कसत्ते हुए ) अरे अब तो तू कमा रही है न , अब पैसे की कैसी कमी,  अपने लाला को बोलकर कभी भी  हजार दो हजार तो ला ही सकती है न

सुनीता- कैसे मर्द हो आप, आपको तो समझाना भी सर को पत्थर पर मरने जैसा है

(पति फिर भी पैसे लेकर चला ही जाता है , सुनीता मायूस होकर घर के कोने बैठ जाती है और भाग्य को कोस रही होती है , पता नहीं कब  इन्हे अक्ल आएगी )

इतने में सोनू बस्ता लेकर घर में प्रवेश करता है

सोनू- मम्मी मम्मी कहाँ हो ? बस्ता एक किनारे रखता है

सुनीता- ( आंसू पोछते हुए ) आ गया मेरा बेटा, चल हाथ मुँह धो ले मै तेरे लिए खाना निकाल देती हूँ,

(बेटा खाना खाते हुए)

सोनू- मम्मी , आज प्रिंसिपल सर कह रहे थे अगर कल तक फीस नहीं जमा किया तो मै इम्तिहान में नहीं बैठ पाउँगा,

सारे बच्चो की फीस जमा हो गयी है।

सुनीता- तू फिक्र मत कर बेटा तेरी फीस का बंदोबस्त हो जायेगा, मै कल फीस जरूर जमा करा दूंगी।

दृश्य -३

(रात का दृश्य है, तीनो सो रहे होते है , पति बक बक कर रहा होता है)

पति- सुनती हो मैंने आज चौराहे पर चाय वाले से बात कर ली है , एक दिन के १५० रूपये देने के लिए बोल रहा था, कल से सोनू चाय की दुकान पर जायेगा, और वैसे भी तो पढ़लिखकर मजदूरी ही तो करनी है , फिर पैसे क्यों बर्बाद करना I

(पत्नी कोई जवाब नहीं देती )

(पति के सोने के बाद , सुनीता एक संदूक खोलती है उसमे उसकी माँ के दिए हुए कंगन होते है, और उसे अपने पल्लू में बांधकर सो जाती है

सोनू बगल में सो रहा होता है,  )

सुनीता- (सोनू  के सिर पर हाथ फिराते हुए) – मेरा बेटा जरूर पढ़ेगा चाहे उसके लिए मुझे कितनी भी तकलीफ उठानी पड़े।

दृश्य -४

पति अभी तक सो रहा होता है

माँ- बेटा मै आज तेरा फीस जमा कर दूंगी , तू बस मन लगाकर अपनी परीक्षा की तैयारी कर

सोनू- ठीक है मम्मी।

दृश्य -५

आज रिजल्ट का दिन है

सोनू- माँ आज मेरा रिजल्ट आएगा, सर ने बोला है अपने मम्मी पापा को लेकर आना , आप दोनों को भी चलना है,लेकिन पापा तो अभी तक सो ही रहे है।

सुनीता- सुनते हो जी आज अपने बेटे का रिजल्ट आने वाला है, आज तो साथ में चलो, सारे बच्चो के माँ बाप आये होंगे

पति- जाओ अपने लाटसाहब को लेकर , बहुत बड़ा तीर मारा होगा इसने, मै नहीं जाऊंगा मेरे पास समय नहीं है I

माँ बेटा दोनों स्कूल के लिए निकल जाते है ,

 पिता कुछ देर बाद घर से बाहर निकलता है , सामने से पडोसी अपने बच्चे को लेकर स्कूल जाते हुए पूछता है भाई आप स्कूल नहीं जा रहे हो क्या ? आज बच्चो का रिजल्ट आने वाला है , आप भी आ जाना। 

पिता कुछ सोचता है और बेमन से स्कूल के लिए निकल देता है

दृश्य -६

स्कूल का दृश्य

सारे बच्चे अपने माता पिता के साथ बैठे हुए है, स्कूल का सारा स्टाफ बैठा हुआ है, रिजल्ट की घोषणा की जाती है और सोनू पूरे स्कूल में प्रथम श्रेणी (टॉपर) आता है , सुनीता की आँखों से आंसुओ की धारा बह रही होती है , उधर सबसे पीछे पिता एक कोने में यह दृश्य देखकर भावुक हो उठता है।

प्रिंसिपल- बेटा आज तुमने अपना और अपने माता पिता का नाम रोशन किया है, पूरे स्कूल को तुम्हारे ऊपर गर्व है , तुम्हारी इस छमता को देखते हुए प्रशाशन ने तुमको आगे की पढाई के लिए स्कोलरशिप (छात्रवृति) देने का फैसला लिया है

पिता धीरे धीरे अपने बच्चे के पास आता है और हाथ जोड़कर बेटे से माफ़ी मांगता है

पिता- बेटा मुझे माफ़ कर दे मैंने पढाई की कीमत नहीं समझी, सुनीता तुम भी मुझे माफ़ कर दो मैंने तुम पर बहुत जुल्म किये है,

लेकिन अब मेरी आँख खुल गयी है, मै वादा करता हूँ आज के बाद कभी शराब को हाथ नहीं लगाऊंगा , और दिन रात मेहनत करके अपने बेटे को उच्च शिक्षा दिलाऊंगा

प्रिंसिपल- बहुत अच्छी बात है आज आपकी आँखे खुल गयी, सोनू जैसे न जाने कितने बच्चे है जो अपने माता पिता के जागरूक न होने के कारण पढ़ लिख नहीं पाते और बाल मजदूर बनकर रह जाते है,

आज से मै अपने स्कूल प्रशाशन को यह निवेदन करूँगा की ऐसे बच्चे जो पढ़ना चाहते है परन्तु किसी कारण से स्कूल की फीस नहीं दे पाने की वजह से पढाई नहीं कर पाते उन सभी बच्चो को मुफ्त शिक्षा दी जाएगी।

और साथ में नशे को बंद करने की भी मुहीम चलायी जाएगी ताकि कोई दूसरा अपने मेहनत के पैसे को यूँ ही बर्बाद न करे और अपने परिवार का पालन पोषण अच्छे से कर सके। 

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सौतेली माँ…

कमलदीप अपनी पत्नी और एक बेटी के साथ एक छोटे से गांव में रहता था। पूरा परिवार सुखपूर्वक रहता था। बेटी कला अभी पांच वर्ष की थी। कमलदीप एक सेठ के दुकान पर नौकरी करता था। पत्नी कमला घर के काम काज के साथ गांव में छोटे मोटे काम कर लेती। सब कुछ सही चल रहा था। अचानक एक दिन मानो उस घर को जैसे किसी की नजर लग गयी। कमला की तबियत ज्यादा खराब हो गयी। गांव में काफी इलाज के बाद भी जब हालत में सुधार नही हुई तो कमलदीप उसे लेकर शहर आ गया। शहर में उसके एक दूर के रिश्तेदर रहते थे। उन्होंने उनकी मदद की और एक अच्छे अस्पताल में भर्ती करा दिया। लेकिन हालत में सुधार होने की बजाय और खराब हो गई। सात दिन बाद उसका शरीर शांत हो गया। बेटी और पिता दोनों सिरहाने के पास मौन खड़े थे, उनकी दुनिया खत्म हो चुकी थी। आंखों से सिर्फ आंसू की धारा बहती जा रही थी।

बुझे मन से उसका अंतिम संस्कार किया। आस पास के लोगों ने उसे सान्त्वना दिया। औऱ फिर सब अपने-अपने जिन्दगी में व्यस्त हो गए। कुछ दिन बीतने के बाद उसने सोचा कि क्यो न शहर में ही रहकर कुछ काम किया जाए। गांव में अब उसे जाना अच्छा नही लग रहा था । रिश्तेदार ने उसे एक किराये का कमरा दिला दिया और एक सेठ से बात करके काम भी लगवा दिया।

सब कुछ फिर सामान्य सा हो गया था । लोगों ने समझाया कि बेटी की उम्र अभी छोटी हैं, उसे दूसरी शादी कर लेनी चाहिए। लेकिन उसने उनकी बातों को अनसुना कर दिया। एक दिन उसी रिश्तेदार के घर एक महिला आयी। उन्होंने उन दोनो की मुलाकात कराई और शादी का प्रस्ताव रखा, उनके बहुत से अहसान थे कमलदीप पर इसलिए वह मना भी न कर सका। एक निश्चित दिन पर दोनों शादी के बंधन में बंध गए।

पूरा परिवार फिर से सुखपूर्वक रहने लगा। पहले तो कमलदीप को चिंता सता रही थी कि दूसरी माँ मेरी बेटी का खयाल रखेगी या नही। लेकिन अब वह निश्चिंत हो गया था। उसकी बेटी भी नई मां के साथ घुल मिल गयी। कुछ दिन तो सब ठीक रहा लेकिन धीरे धीरे नई पत्नी के व्यवहार में बदलाव आने लगा। वह पति का भी ध्यान नही रखती। कमलदीप ने सोचा कि कोई बात नही, कम से कम मेरी बेटी तो खुश है,उसे अपनी माँ की याद नही आयेगी।

एक दिन कमलदीप काम से जल्दी आ गया। घर पहुँच कर देखा तो उसकी बेटी बिस्तर पर मुँह छिपाकर सिसक रही है। उसने पूछा तुम्हारी माँ कहाँ है, तो उसने बताया की वह तो रोज ही कही चल जाती है। कमलदीप ने सोचा रिश्तेदार के घर गयी होगी।

फिर कुछ सोचकर उसने बेटी से सवाल किया , क्या तुम्हारी नई माँ तुम्हारा ख्याल वैसे ही रखती है जैसे सगी मां करती थी। फिर बेटी ने जो जवाब दिया उसे सुनकर मानो उसे विश्वास नही हुआ!

बेटी ने कहा पहले वाली मां झूठ बोलती थी और उन्हें गिनती भी नही आती थी, लेकिन नई माँ सच बोलती है और पढ़ी लिखी भी है। पिता हैरान होकर पूछा क्यो बेटी ऐसा क्यों कह रही है।” बेटी ने बताया पहले जब मैं कोई शरारत करती तो माँ कहती थी आज कुछ खाने को नही दूंगी लेकिन कुछ देर बाद वह अपने हाथों से मुझे खिलाती थी। अगर मैं उससे एक चॉकलेट या कुछ भी मांगती तो तीन चार देती थी। लेकिन नई मां जब कहती कि खाना नही दूंगी तो वह दिन भर कुछ भी नही देती और कुछ मांगने पर उतना ही गिनकर देती।”

बेटी के इस दास्तान से उसका कलेजा हिल गया। उसने निश्चित किया कि कुछ भी हों वो उससे रिश्ता तोड़ देगा। और गांव वापिस चला जायेगा।

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कोरोना चक्र – एक प्रेम कथा

सूनी पड़ी है सड़के , मंजर है तनहा तनहा

सुबह का समय , सूरज की किरणे खिड़की के रास्ते सीधे कमरे में प्रवेश कर रही थी। बाहर चिडियो के चहचहाने और बच्चो के खलेने की शोर भी सुनाई दे रहे थे। समर्थ वो समर्थ जल्दी उठ जा कितना दिन चढ़ आया है,अभी तक सो रहा है, चिल्लाते हुए माँ की आवाज कानो में पड़ी तो वो झट से उठ बैठा। क्या माँ इतनी जल्दी जगा दिया, आज तो कालेज भी नहीं जाना है, शिकायत के लहजे में बोला और वाशरूम की तरफ बढ़ गया। सुबह के नौ बज चुके थे , डाइनिंग टेबल पर समर्थ और उसकी माँ के साथ एक छोटा बच्चा भी बैठा थ। अरे सनी सुबह इधर कैसे आ गया, पूछा समर्थ ने। उसकी माँ ने बोला ये सुबह से तीन बार आ चुका है, शायद तमन्ना को कोई किताब चाहिए थी इसलिए भेजा है। तमन्ना का छोटा भाई है सनी।

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