Author name: Akelanand

अपने अंदर के भावना को दबाये नहीं, समय पर जता देना चाहिए

अगर आप को किसी भी व्यक्ति या जीव पर प्रेम अथवा नकारत्मक भाव आ रहे है तो कोशिश करे की उसी समय प्रदर्शित कर दे या उसके साथ साझा कर दे। मान लो आपका कोई मित्र, सहकर्मी या रिश्तेदार आपको बार बार परेशान कर रहा है या उसकी कुछ आदते या बाते आपको अच्छी नहीं लगती तो उसे अनदेखा कर देना चाहिए एक या दो बार के लिए, लेकिन अगर यह प्रक्रिया निरंतर आपके साथ हो रही है तो आपको उससे दूरिया बना लेना चाहिये लेकिन अगर स्थिति ऐसी हो की आप उससे दूर यही हो सकते जैसा की वो आपका सहकर्मी है या आपसे ऊँचे पद पर है तो एक बार उसे समझा देना चाहिए की आपको ये बर्ताव पसंद नहीं है।


अगर अपने समय रहते ऐसा नहीं किया तो आपके अंदर जो उस अमुक व्यक्ति के लिए ईर्ष्या या क्रोध की भावना पल रही है किसी दिन एक ज्वालामुखी की तरह फट सकता है और उसके लिए किसी बड़े कारण की भी जरूरत नहीं होगी , और इतने दिनों तक जैसा की आप सोच रहे थे की आपके रिश्ते में कोई तनाव न हो उस समय आप दोनों के पास कोई विकल्प ही नहीं रह जायेगा।
और काफी दिनों की नजदीकियां हमेशा हमेशा के लिए दूरियों में बदल जाएगी।

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अपनों की निन्दा और तारीफ

अपनो द्वारा किये गए निरन्तर प्रशंसा से आपकी ख्याति दूर-दूर तक फैले ऐसा शायद ही हो,

परन्तु अपनो द्वारा किया गया निंदा का एक शब्द भी आपको चारो ओर बदनाम करने के लिए काफी है।

अकेलानंद

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रिश्ते तोड़ने से अच्छा है दूरिया बना ले-

अगर एक इंसान की वजह से परिवार में कलह और अशांति फ़ैल रही हो तो उसे अलग कर देना चाहिए। ऐसा भी हो सकता है वह अकेला व्यक्ति अपनी जगह सही हो या ऐसा भी तो हो सकता है की सिर्फ वही सही ह। परन्तु बाकी लोगो की मानसिकता उसके खिलाफ है इस स्थिति में उस व्यक्ति को स्वयं ही उनसे दूर हो जाना चाहिए।

अगर आप अपने रिश्ते को बरक़रार रखना चाहते है तो या कोई बड़ी बात नहीं है, अगर आपने दुरी बना ली तो बाद में नजदीकियां हो सकती है, लेकिन अगर अपने रिश्ते तोड़ने की कोशिश की तो आप उसे फिर जोड़ नहीं सकते।
होता यूँ है की बाकि परिवार के लोग जिनकी मानसिकता एक जैसी है अगर उनके बीच में किसी भी तरह का मनमुटाव या वाद विवाद होता है तो कुछ दिन बाद सब कुछ सामान्य हो जाता है ,
परन्तु यदि ऐसा आपके साथ होता है तो सभी लोगो को कुछ ज्यादा ही ठेस पहुँचता है क्योकि आपसे ऐसी उम्मीद नहीं होती, भले ही आपने सही सुझाव दिया हो या सही आवाज उठाई हो, इस स्थिति में सब आपके खिलाफ हो जाते है।

अतः आपको अपने मानसिक स्थिति को बिलकुल ही सामान्य अवस्था में रखकर निर्णय लेना चाहिए।

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प्रश्न चिन्ह

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प्रश्न चिन्ह, एक चिन्ह ही नहीं अपने आप मे एक शब्द, वाक्य तो क्या पूरी किताब हैं। लोग इसे प्रयोग करने से नहीँ हिचकिचाते।

परंतु जिन किसी पर भी प्रश्न चिन्ह लग जाता है, तो सारी जिंदगी उसे  जिंदगी उस प्रश्न चिह्न का समाधान ढूढ़ने में लग जाता है।  किसी के ऊपर भी सवाल उठाने से पहले एक बार सोच विचार अवश्य कर ले। 

क्या अमुक व्यक्ति पर सवाल उठाने से आपकी समस्या का समाधान हो जायेगा।  अगर ऐसा मुमकिन है तो कर सकते है परन्तु दूसरे पहलू पर भी विचार करे की आपके इस कदम से सामने वाले की जीवन शैली पर क्या प्रभाव पड़ेगा। 

कही ऐसा न हो की आपके मात्र कुछ ही लाभ के अपेक्षा सामने वाले का ज्यादा नुकसान हो रहा है, ऐसी स्थिति में आपको थोड़ी सी इंसानियत दिखाते  हुए सामने वाले की भी परवाह करने की जरुरत है            इसे भी पढ़े –अपनी परवाह करने वाले को लापरवाही से न देखे..                              

अकेलानन्द

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अनचाहे रिश्तो में कोई स्थिरता नहीं होती !

मानते है की आपने उसके लिए अपने दिल को काफी तकलीफे दी है, एक छोटी सी आस दिल के किसी कोने में अभी भी दीपक की लौ की तरह जगमगा रही है।

कभी वो भी शायद तुम्हे मन ही मन प्रेम कर बैठी हो , तुम्हारे साथ जाने अनजाने बहुत से लम्हे जिए हो, तुम्हे देखकर उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती थी, परन्तु………………

वो दिन शायद आपकी जिंदगी के सबसे बड़े खुशनसीब दिन थे, शायद ऊपर वाला भी तुम्हारी जोड़ी का आनंद ले रहा था ……

पर अफ़सोस की बात तो ये है की—

जो तुम्हे मिल नहीं सकता, तुम जिसके लायक अब रहे ही नहीं, जिसे चाहकर भी अपना नहीं सकते, उसे पाने की बात तो दूर एक अनजाना रिश्ता भी नहीं रख सकते।

तो फिर उसके लिए अपने दिल को कोसने या अपने रक्त कोशिकाओं को जलाने का कोई औचित्य नहीं .

समझदार बने और सच्चाई को स्वीकार करने का साहस भी रखे

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तर्ज- तूने मुझे बुलाया मेरी वाली ए……..

तूने मुझे बुलाया मेरी वाली ए..

मैं भागा- भागा आया मेरी वाली ए…

वो बेलन वालिये वो चिमटा वालिये

वो झाड़ू वालिये वो सैंडल वालिये..

तूने मुझे बुलाया मेरी वाली…. ए

मैं भागा- भागा आया मेरी वालिए।।

आंखों पर था मैं पट्टी बाँधा

समझा था तुझे कृष्ण की राधा

सारे लोगों ने समझाया

अपना अपना दुखड़ा सुनाया

पर मैं समझ न पाया उनकीं वाली ए..

तेरे जाल में फंसता आया सबकी वालिये।

तूने मुझे बुलाया मेरी वाली ए….

मैं भागा भागा आया मेरी वाली ए……।।

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”हमारा तिरंगा हमारी शान ”

ऐ तिरंगे आज बहुत नाज तो होगा तुझे,
आसमान की बुलंदियों में तुझे लहराया जायेगा।
जो कभी झुकते नहीं थे मंदिर या दरगाहो में
उनके सिर भी तू अपने कदमों में झुका पायेगा।

पर क्या हकीकत है ये तझसे बेहतर कौन जनता है
इस देश का ही एक तबका तुझे अपना नहीं मानता है।

आज वो जो बात करते त्याग और बलिदान की,
वो कल किसी कोठे या मदिरालय में खड़ा होगा,
आज जो इतनी इज़्ज़त बक्शी जा रही तुझे,
अफ़सोस कल किसी गली के कूड़े में पड़ा होगा ।

देश भक्ति का ये नशा बस है दिखावा आज का
सच नहीं सब झूठ है, छलावा है बस ताज का।

दिन अस्त होते ही भुला देंगे तुझे ये आज ही
फिर से तेरी याद अगले सत्र सबको आएगा
फिर से गूज उठेगी जयकारे तेरे नाम से
और फिर एकबार तू आकाश में लहराएग।।

अकेलानन्द

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सौतेली माँ…

कमलदीप अपनी पत्नी और एक बेटी के साथ एक छोटे से गांव में रहता था। पूरा परिवार सुखपूर्वक रहता था। बेटी कला अभी पांच वर्ष की थी। कमलदीप एक सेठ के दुकान पर नौकरी करता था। पत्नी कमला घर के काम काज के साथ गांव में छोटे मोटे काम कर लेती। सब कुछ सही चल रहा था। अचानक एक दिन मानो उस घर को जैसे किसी की नजर लग गयी। कमला की तबियत ज्यादा खराब हो गयी। गांव में काफी इलाज के बाद भी जब हालत में सुधार नही हुई तो कमलदीप उसे लेकर शहर आ गया। शहर में उसके एक दूर के रिश्तेदर रहते थे। उन्होंने उनकी मदद की और एक अच्छे अस्पताल में भर्ती करा दिया। लेकिन हालत में सुधार होने की बजाय और खराब हो गई। सात दिन बाद उसका शरीर शांत हो गया। बेटी और पिता दोनों सिरहाने के पास मौन खड़े थे, उनकी दुनिया खत्म हो चुकी थी। आंखों से सिर्फ आंसू की धारा बहती जा रही थी।

बुझे मन से उसका अंतिम संस्कार किया। आस पास के लोगों ने उसे सान्त्वना दिया। औऱ फिर सब अपने-अपने जिन्दगी में व्यस्त हो गए। कुछ दिन बीतने के बाद उसने सोचा कि क्यो न शहर में ही रहकर कुछ काम किया जाए। गांव में अब उसे जाना अच्छा नही लग रहा था । रिश्तेदार ने उसे एक किराये का कमरा दिला दिया और एक सेठ से बात करके काम भी लगवा दिया।

सब कुछ फिर सामान्य सा हो गया था । लोगों ने समझाया कि बेटी की उम्र अभी छोटी हैं, उसे दूसरी शादी कर लेनी चाहिए। लेकिन उसने उनकी बातों को अनसुना कर दिया। एक दिन उसी रिश्तेदार के घर एक महिला आयी। उन्होंने उन दोनो की मुलाकात कराई और शादी का प्रस्ताव रखा, उनके बहुत से अहसान थे कमलदीप पर इसलिए वह मना भी न कर सका। एक निश्चित दिन पर दोनों शादी के बंधन में बंध गए।

पूरा परिवार फिर से सुखपूर्वक रहने लगा। पहले तो कमलदीप को चिंता सता रही थी कि दूसरी माँ मेरी बेटी का खयाल रखेगी या नही। लेकिन अब वह निश्चिंत हो गया था। उसकी बेटी भी नई मां के साथ घुल मिल गयी। कुछ दिन तो सब ठीक रहा लेकिन धीरे धीरे नई पत्नी के व्यवहार में बदलाव आने लगा। वह पति का भी ध्यान नही रखती। कमलदीप ने सोचा कि कोई बात नही, कम से कम मेरी बेटी तो खुश है,उसे अपनी माँ की याद नही आयेगी।

एक दिन कमलदीप काम से जल्दी आ गया। घर पहुँच कर देखा तो उसकी बेटी बिस्तर पर मुँह छिपाकर सिसक रही है। उसने पूछा तुम्हारी माँ कहाँ है, तो उसने बताया की वह तो रोज ही कही चल जाती है। कमलदीप ने सोचा रिश्तेदार के घर गयी होगी।

फिर कुछ सोचकर उसने बेटी से सवाल किया , क्या तुम्हारी नई माँ तुम्हारा ख्याल वैसे ही रखती है जैसे सगी मां करती थी। फिर बेटी ने जो जवाब दिया उसे सुनकर मानो उसे विश्वास नही हुआ!

बेटी ने कहा पहले वाली मां झूठ बोलती थी और उन्हें गिनती भी नही आती थी, लेकिन नई माँ सच बोलती है और पढ़ी लिखी भी है। पिता हैरान होकर पूछा क्यो बेटी ऐसा क्यों कह रही है।” बेटी ने बताया पहले जब मैं कोई शरारत करती तो माँ कहती थी आज कुछ खाने को नही दूंगी लेकिन कुछ देर बाद वह अपने हाथों से मुझे खिलाती थी। अगर मैं उससे एक चॉकलेट या कुछ भी मांगती तो तीन चार देती थी। लेकिन नई मां जब कहती कि खाना नही दूंगी तो वह दिन भर कुछ भी नही देती और कुछ मांगने पर उतना ही गिनकर देती।”

बेटी के इस दास्तान से उसका कलेजा हिल गया। उसने निश्चित किया कि कुछ भी हों वो उससे रिश्ता तोड़ देगा। और गांव वापिस चला जायेगा।

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स्वयं से ज्यादा किसी को न चाहो….

जिस दिन आप किसी के याद में जी न सको तो समझ लेना आप बर्बादी के द्वार पर दस्तक दे चुके हो।

किसी को भी अपनी जिंदगी में इतनी अहमियत न देना की आपके हर सांस उसके अधीन हो जाये और आपको घुटन के सिवाय कुछ भी न मिले।

मुझे अकेले खुश रहते देख भले ही ये दुनिया मुझे घमंडी क्यो न समझे, पर सच तो यह है कि मैं इस मतलबी दुनिया को समझ चुका हूँ।

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भला किसी का कर न सको तो

बुरा किसी का कर न सको तो,

भला किसी का मत करना।

कांटे बनकर चुभ न सको तो,

बनकर फूल तू मत रहना।।

बन न सको हैवान अगर तुम,

कम से कम शैतान बनो।

नही कभी भगवान बनो तुम,

न ही कभी इंसान बनो।

पापकर्म अपना न सको तो,

पुण्य के पथ पर मत चलना।।

कांटे बनकर चुभ न सको तो,

बनकर फूल तू मत रहना।।

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तन्हा दिल

कभी जो दिल मे रहते थे हमदर्द बनकर मेरे,

जुदाई उनकी मुझको एक नई सौगात दे गई।

कुछ साथ रहकर भी गैरो का साथ देते रहे,

वो जिंदगी भर साथ देने के लिये,

मेरा साथ छोड़ गई……

 

सुलझी हुई थी जुल्फे, आंखों में खुशनमी थी,

जाने थी क्या बला वो, शायद ही कुछ कमी थी।

चाहेगी वो उसे ही, या चाहता है वो भी उसको।

उन दोनो को ही नही, सबको गलतफहमी थी।।

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