माँ बनी भिखारिन ……

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माँ बनी भिखारिन ……

 

आजकल हर चौराहे पर कोई बूढी माँ भीख मांगते हुए नजर आ ही जायेगी, परन्तु एक फर्क है पहले सिर्फ मांगते थे परन्तु आज कल हाथ में कोई न कोई सामान  जैसे कलम, या पेंसिल होता है ….

अकेलानंद की लिखी हुई रचना इसी विषय पर आधारित है –

भीख मांगते हुए

देखी एक नारी थी किसी की महतारी,

आज बनके भिखारी वो बेचारी नजर आती है ।

दिल में अरमान लिए हाथ में सामान लिए,

हथेली पर जान लिए भागी चली जाती है ।।

हाथ जोड़ बोलती वो आधी सांस छोडती वो,

एक एक करके सभी के पास जाती है ।

कोई दुत्कार देता कोई फटकार देता,

कोई कुछ देता पर बुरा नहीं वो मानती है ।।

अपने अतीत को याद करते हुए.

बेटी होती है पराई, बन बहु घर आई,

खूब बजी शहनाई हुई उसकी सगाई थी ।

बीता कुछ साल  हुआ सुन्दर सा लाल,

खूब मचा था धमाल, खुशहाली बड़ी आयी थी ।।

गए दिन रैन खुशियों से भरे नैन,

आज दूल्हा बनकर बेटा घोड़ी पर सवार था ।

बहू सुंदर सी आयी थी दहेज़ खूब लायी,

अपने रंग रूप का उसको खुमार था ।।

बोली एक बात सुनो मेरे प्राणनाथ,

नहीं ऐसे है हालात जो इनको भी पालो तुम ।।

मानो मेरा कहना नहीं संग इनके रहना,

आज ही माँ बाप को घर से निकालो तुम ।

है किस्मत की मारी अब बनी दुखियारी,

आज अपनों से हारी सारी दुनिया ये जानती है ।।

कोई नहीं अपना जो पूरा करे सपना,

अपने पराये सबको वो पहचानती है ।

आखिर में आप सबसे एक बात कहना चाहूँगा की माँ बाप को घर से निकालने में बहू का हाथ होता है,

परन्तु एक कड़वा सच ये भी है की इसमें बेटे का भी साथ होता है

है बिनती हमारी सुनो बेटा बहू  प्यारी,

माँ बाप की जो सेवा की तो सारे सुख पाओगे ।

किया घर से बेघर  दुखी होगा ईश्वर।

फिर एक दिन तुम भी बेघर किये जाओगे ।।

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कवि – बीरेंद्र गौतम “अकेलानंद

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