July 2025

कौन हूँ मैं

कौन हूँ मैं

कौन हूँ मैं, मैं कौन हूँ

आन हूँ मैं बान हूँ

खुद की अपनी शान हूँ

जिन्दगी में कौन मेरा

मैं तो खुद की जान हूँ

कौन हूँ मैं , मैं कौन हूँ

सपनो का मैं राही हूँ

मैं निडर सिपाही हूँ

अपनी बलि चढाने को

खुद ही मैं कसाई हूँ

कौन हूँ मैं , मैं कौन हूँ

ना मेरा कोई प्यार है

न किसी से इजहार है

तन्हाई में मैं जीता हूँ

तन्हाई मेरा यार है

कौन हूँ मैं, मैं, कौन हूँ

कोई ख्वाब मेरा तोड़ गया

मझधार में ही छोड़ गया

एहसान किया उसने मुझ पर

मुझको मुझसे जोड़ गया

कौन हूँ मैं, मैं कौन हूँ

अब तो मैं रुकुंगा नहीं

अब कभी झुकूँगा नहीं

वो खुद को चाहे मार दे

पर साथ दे सकूँगा नहीं

कौन हूँ मैं, मैं कौन हूँ

अब किसी की सुनना नहीं

साथी कोई चुनना नहीं

शांत हो चूका हूँ मैं

ख्वाब कोई बुनना नहीं

अब मौन हूँ मैं, हां मैं मौन हूँ

कवि बीरेंद्र गौतम “अकेलानंद “

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दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न

 

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न,

घिरा पड़ा हूँ अंधकार से आकर राह दिखाओ न ।

बचपन में चलते चलते जब घुटने पर गिर जाता था ,

मिट्टी कीचड़ में सन करके मैं गंदा हो जाता था ।।

रोते रोते सूनी आँखे आंसू से भर जाती थी ,

माता भी गुस्से में जब पास न मेरे आती थी ।

झुकी कमर से भी तुम तब ऐसी दौड़ लगाते थे,

राजा बेटा मेरा कहकर फ़ौरन गोद उठाते थे ।।

आज गिरा हालात में फसकर फिर से मुझे उठाओ न ।

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न ।।

राजा रानी, घोड़े हाथी के किस्से  रोज सुनाते थे,

मुझे बिठा कर पीठ पर अपने खुद घोडा बन जाते थे ।

कभी सहारा बनू आपका , मुझको चलना सिखलाया,

सही गलत में फर्क भी करना तुमने मुझको बतलाया ।।

आज जमाना बदल चुका है समझ नहीं कोई आता ,

रहे सामने साथी बनकर पीछे से गला दबा जाता ।

कौन है अपना कौन पराया फिर मुझको समझाओ न,

फिर से गिरा मुसीबत में अब इससे मुझे बचाओ न ।।

दादा जी दादा जी मुझको फिर से गले लगाओ न ।

घिरा पड़ा हूँ अंधकार से आकर राह दिखाओ न ।।

 

कवि बीरेंद्र गौतम ” अकेलानन्द”

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हंसो हमेशा जिन्दगी में 

हंसो हमेशा जिन्दगी में 

 

किसी बात पर हंसो , कभी बिन बात पर हंसो 

हालत नहीं अच्छे तो, अपने हालात पर हंसो 

हंसो हर दिन पर और हर रात पर हंसो 

कभी जुदाई पर हंसो तो, कभी मुलाकात पर हंसो 

अपने हार पर हंसो, फिर उसी जज्बात पर हंसो 

किसी  ने दी नहीं कभी , हर उस सौगात पर हंसो 

ज़माना हंस रहा तुम पर, उस सवालात पर हंसो 

हंसो हरदम की जब तक, तुम्हारे अंदर सांस बाकी है 

और जब अंत हो नजदीक , तो उस कायनात पर हंसो 

सदा उदास रहने से, सब कुछ बिखर जाता है 

और हंसते रहने से जिन्दगी संवर जाता है 

अकेले में भी हंसो और सबके  साथ भी हंसो 

किसी बात पर हंसो तो कभी बिन बात पर हंसो 

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बीरेंद्र गौतम ” अकेलानंद “

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