वो लम्हा अब भी मुझे याद आता है II
वो पहली बार जब तुमसे नजरे मिली थी
मानो क्यारी की हर इक कलिया खिली थी
मन मेरा उमंगो से भर उठा था
दिल की धड़कने तेज हो गयी थी
इक टक देखता ही रह गया था
मेरी चेतना जाने कहाँ खो गयी थी
पल पल की वो याद अब भी सताता है I
वो लम्हा अब भी मुझे याद आता है II
कुछ दिन हो चले थे
कुछ शिकवे तो कुछ गिले थे
रहते थे साथ हरदम
जैसे कब के बिछड़े मिले थे
उसकी मुस्कराने की अदाये
खुशबू से भर जाती थी फिजाये
मै मदहोश हो चला था
कुछ यूँ ही सिलसिला था
वो खुशबू अब भी सांसो में समां जाता है I
वो लम्हा अब भी मुझे याद आता है II
उसका रोज मन्दिर में पूजा करना
नजरे बचाकर मुझे देखा करना
टीका लगाती बड़े प्यार से
फिर छूकर भी अनदेखा करना
मेरी हर बातो का समर्थन करती
घंटो बैठकर जाने क्या मंथन करती
फिर इक दिन कुछ ऐसा लम्हा आया
न बीतने वाला तन्हा मौसम लाया
रह रहकर मुझे तडपा जाता है I
वो लम्हा अब भी मुझे याद आता है II