एक पति-पत्नी कच्चे मकान में रह रहे है, थोड़ी नोक झोक के साथ उनकी दिनचर्या चल रही है I अब सुनते है उनकी इसी रोज– रोज की नोंक झोंक की एक झलक –
पत्नी- सुनते हो जी
पति – मै तो बहरा हूँ जी ।
पत्नी- आप तो बुरा मान गए ।
पति- हम आप की चाल जान गये ।
पत्री- आज क्या खाओगे , जो कहो वो बनाऊ ।
पति- मै मुर्ख हूँ जो आपनी मनपसन्द चीज बताऊ ।
पत्नी- ऐसे क्यों कहते हो , मैंने कब की है अपनी मनमर्जी ।
पति – करोगी जो तेरे मन में है, फिर मै क्यों लगाऊ अर्जी ।
पत्नी- मेरे पास आओ अब दूर न जाओ, खूब सेवा करुँगी तुम्हारी ।
पति – मैं जानता हूँ खूब पहचानता हूँ, क्या मेरी मति गई है मारी ।
पत्नी – आ भी जाओ काम बहुत है , कुछ तुम करो कुछ मैं करू ।
पति- यह सब तेरी जिम्मेदारी है , बेवजह ही मैं क्यों मरूं ।
पत्नी- मरे आपके दुश्मन , कुछ अच्छा खाने को है मेरा मन ।
पति- लाला के यहाँ से कुछ मँगा ले, जो मर्जी है बनाले ।
पत्नी- लाला का बहुत उधार है, हमेशा पैसे ही मांगता है ।
पति- किसी का उधार हमने दिया है, क्या वो नहीं जानता है ।
पत्नी – इतना भी अच्छा नहीं होता, कर्जा चुका देना चाहिए ।
पति- तो जल्दी से मायके से अपने कुछ रूपये लेकर आईये ।
पत्नी- आप बात – बात पर मेरे मायके को मत लाया करो ।
ये सब कहना व्यर्थ है , हमेशा न सताया करो ।।
पति – मैंने तुझे कब कब सताया है, झूठ कहते तुझे शर्म नहीं आती ।
मैं तेरे मायके को नहीं लाता, पर तू मेरे बाप पर जरुर है जाती ।।
पत्नी – वैसे तो मैं आपकी धर्मपत्नी हूँ , अर्धान्ग्निनी हूँ , सहभागिनी हूँ ।
नाम भी महालक्ष्मी रखा है, पर इस घर में अभागिनी हूँ ।।
पति- तू तो फिर भी भाग्यशाली है जो मेरे जैसा पति मिला है ।
वर्ना मुझे पता है मायके में तेरा क्या क्या गुल खिला है ।।
पत्नी- ये सब कहते शर्म नहीं आती, मुझ पर इल्जाम लगाते हो ।
खुद निकम्मे घर पर बैठकर जाने क्या क्या गुल खिलाते हो ।।
पति – अपने पति को निकम्मा कहते हुए तेरी जुबान नहीं कटती है।
इतना ही बुरा हूँ अगर तो मुझसे ही सदा क्यों सटती है ।।
पत्नी – इस तरह से ताने यू हमको न मारो ।
तुम्ही मेरे देवदास मै तुम्हारी पारो ।।
पति – तुम्हारी इसी अदा पर तो हम मरते है ।
सच कहे हम सिर्फ तुमसे प्यार करते है ।।
पत्नी – छोडो इन बातो को कहो क्या बनाऊ ।
पति – पहले लाला से कुछ सामान उधार ले आऊ ।
इसी तरह से दोनों पति पत्नी ख़ुशी से रहते है ।
सिर्फ मन बहलाने के लिए ही झगड़ा करते है ।